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Thursday, May 8, 2025
पहलगाम एक पहेली।
आज (७ मई) हमारे श्रीनगर पड़ाव का आखरी दिन था। कल सोनमर्ग और कारगिल की लंबी यात्रा एक ही दिन में करने से हम दोनों थके हुए थे। सुबह आंख खुली तब भारत का सिंदूर ऑपरेशन अपना रंग ला चुका था। तुरंत ही पता लगाया तो पता चला कि श्रीनगर एयरपोर्ट बंद होने से विमान उड़ान नहीं भरेंगे। हमारी दिल्ली सफ़र कल की है लेकिन सिंदूरी रंग के चलते मामला तुरंत शांत होने की संभावना कम थी इसलिए कल उड़ान भरने की संभावना न के बराबर थी। फिर भी एजेंट को पूछा तो कहा एयरलाइन का मेसेज आएगा। ८ बजते ही शकील आ गया। आज हमारे पहलगाम जाने का प्रोग्राम था। सोचा सामान लेकर चलूँ और वहाँ से कटरा जम्मू निकल जाएँगे। ईश्वर आश्रम से ज्योर्ज एयरपोर्ट जाकर वापस आया था लेकिन कल की उम्मीद थी। हम भी कल एयरपोर्ट खुलेगा उसी उम्मीद में पहलगाम की ओर आगे बढ़ गए। आज पहलगाम की सुंदरता को देखने कम परंतु हादसा हुआ उस जगह का जायज़ा लेने का मन ज्यादा था। सरकार ने इसे पर्यटन के लिए बंद नहीं किया था। जब हम नेशनल हाईवे से बीचब्याडा होकर आगे बढ़े तो स्थानीय लोग के अलावा कोई नहीं था। पहलगाम पर्यटकों के सेवा में बने एपल ज्यूस के ठेले, रेस्टोरेंट, होटल्स सब बंद थे। एक रेस्टोरेंट का किमाड खुला देखकर हम चाय पीने रूके। २८-३० साल का एक हेंडसम युवक सामने आया। कहा साहब सब बंद है फिर भी आप बैठो, आपकी और हमारी चाय बनाने की व्यवस्था की हैं, पी कर जाना। बात निकली तो पता चला कि वह एमसीए है और बेंगलूरु में सॉफ़्टवेयर कंपनी में काम करता था। घर के किसी मसले की वजह से उसे वापस श्रीनगर आना पड़ा इसलिए रोज़गार बनाने उसने यह रेस्टोरेंट दो साल के ₹१२ लाख के लीज़ रेंट से किराए पर ली है। एक शेफ़ ₹२६००० प्रति माह की तनख़्वाह से रखा है और दूसरे दो जन। महीना एक लाख से ज़्यादा का फिक्स्ड कॉस्ट हुआ और धंधा बंद हो गया। अभी तो तीन ही महिने हुए है। उसे कमाने के बदले गँवाने पड़ गए। वह उन आतंकवादियों को कोस रहा था। फिर और भी मायूस हुआ कि ऑपरेशन सिंदूर से मामला और लंबा चलेगा जिससे इस साल अब पर्यटक मिलने की संभावना शून्य हो गई है। देखता है अमरनाथ यात्रा का क्या होगा? उसने चाय के पैसे नहीं लिए। हम लिद्दर नदी के नटखट बहाव को देखते देखते आगे बढ़े। सुंदर सी, अल्लड सी, मस्तीभरी नदी के उस पार मैदानी प्रदेश और उस पर बने होटल्स एक मनोहर दृश्य बनाते थे। रास्ते में उस मस्जिद को देखा जहां सलमान खान ने बजरंगी भाईजान का गाना ‘भर दो झोली मेरी या मुहम्मद’ गाया था। हम चल रहे थे और हमारी कार और थोड़े थोड़े अंतर पर संत्री के सिवा और कोई नहीं था। पहलगांव आया। हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए और उसकी भूगोल को समझते गए। आख़िरी में एक नाला ब्रिज के पार कर दो घोड़ेवाले दिखे उनसे बात करने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही उन्होंने हमारे हाथ में मोबाइल फ़ोन देखा कि पीठ कर ली। इतने में तीन स्टॉल बेचनेवाले मिले। सोचा उनके काम मिले और बहुओं को स्टॉल इसलिए महंगा लगा फिर भी ख़रीद लिया। लेकिन जैसे ही दुर्घटना की बात छेड़ी तो आँख चुराने लगे। हम वापस चले। जम्मू कश्मीर की पुलिस चौकी को पार कर आगे आए तो होटलों का एक समूह आया। वहाँ पार्किंग की गई टैक्सीयां पार्क पड़ी थी। होटल्स सब ख़ाली थे। बगल में एक छोटी सड़क उपर जा रही थी। हम उपर चले तो थोड़े ही दूर बायसरन को दर्शाता बॉर्ड पढ़ा। आगे से धोडेवालो का रास्ता था इसलिए हम वापस मुड़े और बगल की पंजाबी रेस्टोरेंट पर खड़े हुए। रेस्टोरेंट खुला था लेकिन कोई हाजिर नहीं था। मैंने उपर पहाड़ियों की और नज़र जमाई। कुछ भी अंदाज़ा नहीं लगा पाए की क्या और कैसे हो सकता है क्यूँ कि बायसरन यहाँ से लगभग पाँच किलोमीटर दूर था। उपर एक के बाद एक पहाड़ियाँ थी जिसमें मैदानी प्रदेशों में पर्यटन स्थल बनाए गए थे जिसे abc नाम दिया गया है। a मतलब अरु, b मतलब बायसरन और बेताब और c मतलब चंदनवाड़ी। भूतकाल में आतंकवादियों ने सैनिकों पर हमले किये लेकिन पर्यटकों को कभी निशाना नहीं बनाया इसलिए पहाड़ियों में सुरक्षा प्रबंधन करने की जरूरत न लगी हो इसलिए वहाँ कभी सुरक्षा के इंतज़ाम नहीं थे। दशकों से पर्यटक आते थे और पर्यटन स्थल का आनंद लेकर चले जाते थे। आतंकवादी कईयों के सिंदूर मिटाकर भाग गए। लेकिन भाग गए तो गए कहाँ? इस स्थान के आसपास पाकिस्तान बॉर्डर नहीं है। श्रीनगर से नेशनल हाईवे के बायीं और पड़ता है। अगर उपर की ओर जाए तो चंदनवाड़ी, तुलियाँ झील, और बाद में कारगिल लद्दाख आएगा। आर्मी पोस्ट के होने से उसे पार नहीं कर सकते। अगर दायाँ चले और अंदर के रास्ते मिले हों तो हो सकता है नेशनल हाईवे ४४ के पकड़कर भाग जाए। लेकिन दोनों ही स्थिति में वक्त लगेगा। हमारे दल खोज में लग ही गए होंगे। फिर भी नहीं मिले। कहाँ गए? पहाड़ों ने निगल लिया या किसी ख़ुफ़िया बंकर में छिप गये? या कोई भेष बदल कर नीचे के समूह में आ गए? या कैसे कर पाकिस्तान भाग गए? पहेली उलझी हुई है। मेरा मन उदास हो गया। नयी नवेली दुल्हनों के सुहाग उजड़ गए। किसी का पति गया, किसी का बाप गया, किसी का भाई, किसी का बेटा। सेटेलाइट और द्रोण के युग में भी हम पहाड़ों की छानबीन और निगरानी में अधूरे है। मन से दिवंगतों के आत्माओं की सद्गति की प्रार्थना कर हम लौट चले। थोड़े ही आगे सीआरपीएफ के एक बड़ा बेज केम्प मिला। उसके सामने पर्यटकों को ‘❤️ PAHALGAM’ की फ़ोटो फ़्रेम लगी थी और पीछे बायसरन की पहाड़ी। कुछ ६०-८० पर्यटक खड़े थे। कोई गुजराती, कोई कन्नड़ तो कोई तमिल। सहसा टीवी ९ का एक पत्रकार सफ़ारी सुट पहने आया। किसी से इयरफोन लगाकर बातें कर रहा था कि उन्हे लोगों को कुछ किया यह दिखाने यह हमला करना ही था। जैसे ही थोडे पर्यटक देखे उसने अपनी आवाज़ में जोश भर दिया। पहले पर्यटकों को समझाया कि उन्हें क्या जवाब देने है और फिर शुट करने शुरू हो गया। वह ऊँची आवाज में पूछने लगा कि यहाँ बहुत सारे पर्यटक हैं न? खूब मज़ा आ रहा है न? पाकिस्तान को जवाब दे दिया है न? मुझे लगा इन ६०-८० के अलावा पूरा क्षेत्र ख़ाली है। २६ लाशें २२/४ को गिर चुकी। जंग हुई तो और जानें जाएगी और भाई को जोश और आनंद आ रहा है? वक्त जोश का कम होश सँभालने का ज़्यादा है। पता नहीं काल के गर्भ में क्या छिपा है? हमने मेमरी के लिए दो-तीन फ़ोटो खींची और चल दिए। रास्ते में एक वेजीटेरियन ढाबे पर मशरूम मटर और तवे की रोटी का भोजन लिया और दोपहर दो बजे सर्किट हाऊस पहुँच गए। पाँच मिनट में पेमेंट कर चेक आउट किया और सामान लेकर बगल के टैक्सी स्टैंड पर जा खड़े। शेयरिंग टैक्सी में जगह मिल गई और ₹१३०० प्रति यात्री देकर हम बैठ गये।
टैक्सी ड्रायवर शाहिद मलिक बडा साहसी था। मोबाईल पर फोन आता लंबी बातें करता और कार ऊँची रफ्तार से चलाये रखता। कश्मीर घाटी के मैदानी रोड पर वह १२०-१४० किलेमीटर स्पीड सरलता से चलाये जा रहा था। अचरज तो तब हुआ जब जम्मू के पहाडी और सर्पाकार रास्ते पर कार वह ऐसे चला रहा था जैसे कॉम्युटर रेसींग गेम में कार चलाता कोई बच्चा। ३ ३० को निकले थे, एक डीनर ब्रेक लिया थआ फिर भई हम ९.०० बजे जन्मू पहुंच गए थे। हम श्रीनगर से निकले तब पहले कटरा रात्रि विश्राम का प्लान बनाकर चले थे। दिल्ली के लिए वंदे भारत में टिकट उपलब्ध थे बुक करवाए थे। लेकिन टैक्सी में एक भाई रफीक मदीना जाने निकले थे वह रॉड मार्ग से दिल्ली जा रहे थे। हमें लगा कटरा रात्रि का किराया देंगे उतने में दिल्ली पहुँच जाएँगे। हमने प्लान बदला और जम्मू निकल गए और उतरते ही दिल्ली जाने को एक स्लीपर बस तैयार थी, प्रति व्यक्ति १००० किराया दिया और बैठ गए। वंदे भारत का टिकट रद करवाया और अहमदाबाद की फ्लाइट का टाइम मिलाने लग गए। स्लीपर बस में मेरा और लक्ष्मी का पहला सफ़र था। उपर के हिस्से में जगह मिली थी। रात हुई थी और हमें नींद आ रही थी इसलिए बस का हिलना डुलना ध्यान नहीं रहा। बस ने रास्ते में दो स्टोप किए और सुबह के आठ तीस बजते ही हम कश्मीरी गेट दिल्ली पहुँचने को है। एयर इन्डिया में ११.२० का एक सस्ता (₹४५०० प्रति व्यक्ति) टिकट भई मिल गया। २४ घंटे का हमारा यह सफ़र साहसिक और अविस्मरणीय बन गया।
पूनमचंद
Bus to Delhi
८ मई २०२५
NB: हम कश्मीरी गेट दिल्ली ८.४५ को उतरे, कार ड्रायवर प्रेमचंद ने कार उम्मीद से तेज चलाई और हमें १० बजे T3 पहुंचाया। वेब चेकींग किया हुआ था। दो बैग जमा करवाए और सिक्युरीटी चेक करवाकर गेट ३४ए पहुंचे तब बोर्डिंग शुरू हो गया था। फ्लाइट टाईम पर चली, अच्छा खाना दिया और एक घंटे दस मिनट में अहमदाबाद उतार दिया। एयरपार्ट से बाहर आए तो दोपहर का एक बजा था और १.३० को हम हमारे आशियाने गांधीनगर पर थे जहां पांच ग्रान्ड चिल्ड्रन और बहुएँ हमारे स्वागत के लिए खडी थी।
घर वापसी का आनंद ।
ReplyDeleteઘર દુનિયા નો છેડો
WELCOME BACK 🙏
Very adventurous welcome back
ReplyDeleteWelcome Home
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