A refreshing look at Life by Dr. Punamchand Parmar [IAS:1985] former Additional Chief Secretary to Govt of Gujarat
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Wednesday, February 26, 2025
महा शिवरात्रि।
महा शिवरात्रि।
ऋग्वेद के दो देव, एक तरफ़ इन्द्र और दूसरी तरफ़ रूद्र। इन्द्र का काम सहायक और रूद्र का विनाशक। इसलिए इन्द्र को सहाय के लिए प्रार्थना और रूद्र को विनाश न करने के लिए प्रार्थना।
बुराई नाश के बिना कल्याण कैसे संभव है। इसलिए रूद्र का कल्याणकारी रूप बना शिव।
इन्द्र आत्मा है, हमारी दश इन्द्रियों का स्वामी है। इसलिए स्वबल से प्रातिभबल से आगे बढ़ा जा सकता है। लेकिन उसके साथ दैवी कृपा जुड़ जाए, शिव जुड़ जाए, तो सोने में सुहागा।
शिव को जोड़ने रात्रि चाहिए। सूरज के अस्त होने के बाद की रात्रि नहीं, अपने अंदर चल रही इन्द्रियों, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार की रात्रि। जब वे सब तिलमिलाना बंद करेंगे तब तो शिव प्रकाश नजर आएगा।
“वहाँ नहीं सूरज,
वहाँ नहीं चंदा,
फिर भी रहत उजियारा,
साधु अपना देश निराला।”
साँस अंदर जा रही हैं, ठंडी है इसलिए चंद्र कहो। साँस अंदर से अंगारवायु मिलाकर बाहर आ रही है, गर्म है इसलिए इसे सूर्य कहो। अथवा बायें नथुने की साँस को चंद्र कहो और दाहिने की सूर्य। अथवा बायें को यमुना कहो और दाहिने को गंगा और दोनो के समतुलन को सरस्वती; फिर तीनों के संगम सुषुम्ना को पहचान कर संगम स्नान कर लो। सब का निशान शिव है।
जब चंद्र भी न हो, सूर्य भी न हो, अर्थात् साँस के अंदर और बाहर आने जाने में pause-कुंभक हो, उस कुंभ पर ठहरना है, और इसे देखते देखते जब बारह उँगल लम्बी आवन जावन की साँसे हलकी होते होते हुए शांत हो जाए, नथुने पर रखी रूई भी न उडे, विचार और विचारों से रची दुनिया ग़ायब हो जाए, तब उस त्रिवेणी में कुंभ स्नान कर लेना। समाधि लाभ मिलेगा। आत्मा परमात्मा का योग होगा और प्रकट शिव रूबरू होंगे।
शुभ महा शिवरात्रि।
हर हर महादेव। 🙏🕉️
पूनमचंद
महाशिवरात्रि
२६ फ़रवरी २०२५
शिव और रुद्र को सुंदर और सरल ढंग से समझाते हुए शिव के प्रकाश की प्राप्ति के तरीके का सुंदर वर्णन है । अंतर की त्रिवेणी में कुंभ - स्नान का वर्णन भी काफी आकर्षक और प्रभावकारी है ।
ReplyDelete- एम पी मिश्र