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Saturday, May 3, 2025

काम करती सरकार और कश्मीर।

सुबह वैष्णोदेवी से भैरों घाटी होते हम सांझीछत पैदल और फिर हेलीकॉप्टर से कटरा पहुँचे। ₹६५०० किराए की टैक्सी की और सुबह १०.२० बजे हमारी श्रीनगर सफ़र शुरू हुई। हमारी कार का ड्राइवर मुहम्मद अकबर पठान था। कार चलाने का उसका २२ साल का अनुभव था इसलिए तेज़ी से कार चलाता और अपने मोबाइल से जो भी फ़ोन आए बातें करता। हम बच्चे थे तब काबुलीवाला की कहानी का असर था इसलिए मैंने उससे वार्तालाप किया और कुछ टटोलने की कोशिश की। उसके पिता की आतंकवादीयों ने २००३ में हत्या की थी। उसका भाई आंतकवादीयो की कंपनी में ड्रग और नशे का शिकार था। एक दिन कुछ आतंकवादी आए और उनसे छुड़ाने उसके पिता ने एक आतंकवादी को मार दिया। बदले में कुछ दिन बाद वो २०-२५ के जूथ में आए और उसके पिता को मार दिया और दो भाइयों को ज़ख़्मी कर दिया। जिसकी टाँगों में २१ गोली लगी थी वह आज भी लँगड़ाता है। बड़ा मुश्किल है यहाँ की स्थिति को समझना। दोनों तरफ़ से मुखबिर है। लेकिन कौन सही कौन ग़लत किसी को नहीं पता। कौन किसको फँसायेगा या मरवाएगा हादसा होने तक पता नहीं चलता। फिर भी मुखबिर के बिना गुप्त गतिविधियों का पता कैसे चलेगा? जो हैं उसी से काम चलाना है। कश्मीर घाटी के लोग मांसाहारी है लेकिन लोग मांस हर दिन नहीं खाते। सप्ताह में दो एक दिन चार इन्सान के लिए आधा किलो पर्याप्त है। यहाँ मटन (भेड़ का) और बीफ़ (भैंस का) ज्यादा चलता है। बकरा कम पसंद है। मटन यहाँ ₹८०० किलो और बीफ़ ₹४०० किलो बिकता है। कश्मीरी परिवार खाने में संयमी है, मांस का एक ही टुकड़ा खाएँगे जब की पठान को चार टुकड़े चाहिए। हाँ, जब शादी की दावत होती है तो सबके मज़े हो जाते है। १२-१३ आइटम खाने को मिलती है। एक व्यक्ति एक से देढ किलो खा जाता है। सब चार चार का ग्रुप बनाकर खाने बैठते है। चारों में जो उम्र में बड़ा है उसे थाली में रहे गोस्त को बांटने का अधिकार है, जो बराबर टुकड़े कर चारों को बांटता है। बाँटनेवाले के हिस्से में सबसे कमज़ोर भाग रहता है। यहाँ साथ मिल बैठकर खाने की रिवाज है लेकिन बँटवारा थाली से ही शुरू होता है और बाँटनेवाले को तीन की ख़ुशी का ख़याल पहले करना पड़ता है। यही दस्तूर जीवन का भी है। कश्मीरी अवाम को अमन चैन चाहिए। दो-चार प्रतिशत हो सकते हैं विरोधी लेकिन बहुमत पाकिस्तान नहीं चाहता। हिंदुस्तान में उनकी ज़िंदगी ख़ुशहाल है। वह जानते हैं वे कहानियाँ जो पाकिस्तान आर्मी ने बांग्लादेशियों की की थी।कुछ लोग दिन भर मोबाइल में यह जानने में लगे रहते हैं कि क्या हुआ? क्या होगा? उनके दिलोदिमाग़ पर हालात ने क़ब्ज़ा कर रखा है। पहलगांव दुर्घटना से यहाँ कोई ख़ुश नहीं है। पहलगांव दुर्घटना ने ड्राइवर, घोड़ेवाले, शिकारेवाले, होटल, रेस्टोरेंट, दुकानदार, इत्यादि सबके धंधे चौपट कर दिए। प्रवासन ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है जो आतंकवादीयों ने तहस नहस कर दी। सब कुछ सही चल रहा था। सबके दिल में उमंग था। घोड़ेवालों ने नये घोड़े ख़रीदे थे। एक घोड़ा पचास हज़ार से एक लाख का पड़ता है। ड्राइवरों ने नई कारें ख़रीदी और अपने बेटों को काम में जोड़ दिया था। होटल्सवालों ने अपना पूंजी निवेश बढ़ाया था। दुकानदारों ने अपनी दुकानें शॉ रूम बनाकर सजाईं थी और नया मालसामान भर दिया था। पिछले वर्ष के अनुभव से सबके दिल में ख़ुशी और अच्छी आमदनी आने की उम्मीद थी। लेकिन अब मायूसी का माहौल है। उम्मीद क्यूँ न होती? मोदी सरकारने अपने काम से यहाँ के आवाम का दिल जीता है। राष्ट्रीय राजमार्ग नं ४४ (श्रीनगर से कन्याकुमारी ४११२ किलोमीटर) ने जम्मू कश्मीर की सूरत ही बदल डाली है। पिछली सरकारने उधमपुर तक दो लेन से चार लेन रोड बनाया था जिसे इस सरकार ने सोनमर्ग तक लंबा किया। अंतर और ऊँचाई कम करने पर्वतों में छेद कर तेरह टनल बनवाई जिसमें से दो तो नौ और साडे आठ किलोमीटर लम्बी है। चेनानी नसरी टनल ९.२८ किलोमीटर लंबी है। अनंतनाग जिला जो ज्यादा संवेदनशील है वहाँ राष्ट्रीय मार्ग पर ही आठ किलोमीटर लंबा रन वे बनाकर हवाई जहाज़ों की उड़ान और उतरने की व्यवस्था कर रखी है। कुछ दिन पहले मूसलाधार बारिश की वजह से रामबन जिले के सेरी चंबा में भारी भूस्खलन हुआ और राष्ट्रीय राजमार्ग ४४ बंद हो गया। मलबा इतना गिरा था कि जिसे हटाने महिनों लग जाए। लेकिन भारत सरकार ने चंद दिनों में दो में से एक तरफ़ का मार्ग खोलकर यातायात को सुगम कर दिया। दूसरा अभी भी भारी मलबे में दबा है जो खुलने में वक्त लगेगा। बाजु के पर्वत कच्चे है, मिट्टी के बने है इसलिए वर्षा ऋतु में भूस्खलन की संभावना रहेगी। सरकार इसे भी रोकने की कोशिश में जुटी है। पीर पंजाल पहाड़ों के क्षेत्र में बनिहाल टनल (८.४५ किलोमीटर twin tube) पार करते ही हम कश्मीर घाटी की वादियों में प्रवेश कर लेते है। सड़क की दोनों तरफ़ मन लुभाती हरियाली, पीर पंजाल की छोटी मोटी पहाड़ियाँ, बेदा-सफ़ेदा के पेड़, ठंडी सुगंधित फिजा, मँडराते और बुंद बुंद बरसते बादल; कुदरत ने इसे जन्नत बनाया है। इस जन्नत में हाईवे नं ४४ हो, तेज जा रही गाड़ी हो और श्रीनगर का सफ़र हो, क्या कहना, चिरस्मरणीय रहेगा। पुलवामा इसी रोड पर पड़ता है जहां १४ फ़रवरी २०१९ में दिन दहाड़े दोपहर तीन बजे आतंकवादी ने आरडीएक्स से बस उड़ाकर ४० सीआरपीएफ जवानों को शहीद कर दिया था। धमाका इतना बड़ा था की सड़क के दूसरी पार की दुकानों के शीशे टूट गये थे। पहलगांव की दुर्घटना के बाद सरकार ने सीआरपीएफ बंदोबस्त बढ़ाया है। कश्मीर घाटी शुरू होते ही हर १००-२०० मीटर के अंतर पर हथियारबंद जवान खड़ा निगरानी रख रहा है। सीआरपीएफ की गाड़ियाँ भी गस्त लगा रही है। माहौल शांत है लेकिन शांति के पीछे एक भय सूचक सन्नाटा है। हम एक दुकान पर कावा पीने रूके। कुछ बादाम, अखरोट, केसर, शिलाजीत, लहसुन, कावा थोड़ी थोड़ी मात्रा में ख़रीदे और करीब पाँच बजे सर्किट हाऊस पहुँचे। हमारा कमरा तैयार था, सामान रखा, काली चाय पी और दिनभर के थके थे इसलिए आराम फरमाया। आठ बजे कुछ खाया, कुछ पढ़ा और फिर सो गए। आज श्रीनगर की सैर करेंगे। कल डल झील में तेज हवा से नाव पलटने का हादसा हुआ था और आज भी हवा तेज चलने का मौसम विभाग का पूर्वानुमान है इसलिए बाहर ही टहलेंगे। पूनमचंद श्रीनगर ३ मई २०२५

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