A refreshing look at Life by Dr. Punamchand Parmar [IAS:1985] former Additional Chief Secretary to Govt of Gujarat
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Tuesday, May 6, 2025
कश्मीर की पुकार।
ख़ाली ख़ाली डेरा है।
आज सुबह हम खीर भवानी और मनसबल झील का प्रवास किया। खीर भवानी जिसे क्षीर भवानी, राजन्या, श्यामा इत्यादि नाम से पूजते हैं। देवी माँ यहां के पंडितों की कुलदेवी है। हर साल ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी को मेला लगता है तब हज़ारों हिंदुओं यहां माता के दर्शन करने आते है। चिनार के पेड़ों के बीच यह एक पानी का कुंड है जिसके मध्य में एक मंदिर बनाकर उसमें शिवलिंग और पार्वती की मूर्ति की स्थापन किया है। लेकिन मूलतः पूजा को कुंड में पानी स्वरूप रही माँ भवानी की होती है। कुंड के पानी का रंग बदलता है जिससे क़ुदरती या मानवीय दुर्घटना का अंदेशा आता है। पानी का रंग हरा, सफेद शुभ माना गया है और काला या लाल अशुभ। पुजारी बता रहा था कि कारगिल वॉर के वक्त पानी का रंग लाल और कॉविड के वक्त पूरा समय पानी काला बना रहा था। देवी माँ को खीर का प्रसाद चढ़ता है इसलिए खीर भवानी कहते है। कुंड के पानी में लोग फूल और दूध-खीर चढ़ाते देखा। हम जब गये तब हलवे का प्रसाद चढ़ा था जो हमें भी नसीब हुआ। इस स्थान की चौकी नागों की है। यहाँ कोई कोई श्रद्धालु को नाग के दर्शन हो जाते हैं। चिनार के बड़े बड़े पेड़, पेड के तनों में छेद, आसपास पानी और ठंडक, नागों के निवास हो सकते है। किंवदंती है कि यह देवी माँ राजन्या लंकाधिपति रावण की कुलदेवी थी और लंका में वास करती थी। लेकिन रावण के पथ भ्रष्ट होने से हनुमान जी माँ की मर्जी से उन्हें यहां ले आये थे। मंदिर परिसर बड़ा है। हनुमान जी और शिव के छोटे छोटे मंदिर है। सीआरपीएफ का पहरा लगा हुआ है जिसके रजिस्टर में एन्ट्री कर यात्री प्रवेश करते है।
क्षीर भवानी माँ के दर्शन कर हम यहां से थोड़ी ही दूर स्थित मानसबल झील गए। चारों ओर पहाड़ियों के बीच यह झील की अपनी एक सुंदरता है। विलु के पेड़ का अपना एक आकर्षण है। झील गहरी है। पर्यटकों के लिए शिकारा राइड चलती है। पर्यटक नहीं होने से शिकारेवाले मायूस होकर बैठे थे। इस वक्त जब बात करने की फुरसत न हो वहाँ सीज़न बर्बाद हो गई। बग़ल में लगे चकडोल घुमने के लिए तैयार बैठे है लेकिन किसको घुमायें? कुछ खाने को मन था लेकिन कश्मीरी वाजवान हमारे काम का नहीं था। हम यहाँ कुछ देर टहलें और फिर श्रीनगर वापस लौट आए। डल झील और श्रीनगर का कोई मुक़ाबला नहीं। भूख लगी थी, शकील एक अच्छे रेस्टोरेंट में ले गया लेकिन पूरा नॉन वेज माहौल था इसलिए हम बगल के वेजीटेरियन रेस्टोरेंट में गए और कश्मीरी दम आलू का ऑर्डर दिया। सब्ज़ी की करी अच्छी थी लेकिन आलू में कोई दम नहीं था। चश्मे शाही (Royal Spring) और परिमहल बाग़ देखे बिना श्रीनगर की सफ़र अधूरी है। छोटा ही सही चश्मे शाही नाजुकता से भरा है। परिमहल भी छोटा है लेकिन डल झील के सामने उसका खुलना उसे सुंदर बना देता है। शिकारे में सफ़र न करों तब तक श्रीनगर की सफ़र अधूरी है। एक हज़ार शिकारे है लेकिन पर्यटक नहीं होने से सब किनारे लगाकर बैठे है। गप्पे लगाए, गाने गाए, दिल बहलाए लेकिन रुपया न आया तो दिन व्यर्थ हो जाता है। शिकारे का मालिक भी काम मिलेगा तो तनख़्वाह देगा। हम एक जगह रूके तो शिकारेवाले ने चार पॉइंट के ₹२८०० किराया बताया लेकिन बार्गेनिंग किया तो ₹१५०० पर तैयार हुआ। मैंने तो हाँ कर ली लेकिन लक्ष्मी माननेवालों में से नहीं थी। कहे ज्यादा कह रहा है, आगे चलते है। वह सही थी। दूसरे स्टेन्ड पर चार पॉइंट सफ़र के लिए ₹८०० का ऑफ़र था। हम बैठ गए। दो दिन पहले तेज़ हवा के चलते एक शिकारा पलटा था और एक मौत हुई थी इसलिए मन में हल्का डर था लेकिन शांत पानी के आह्वान को हम नहीं रोक सके। यह मन प्रसन्न करनेवाली राइड थी। पानी पर हल्के हल्के चल रहे हों और एक के बाद एक व्यापारी दूसरा शिकारा लेकर आएगा, आपसे बात करेगा और अपनी नायाब चीज़ें पेश करेगा। कोई फ़ोटो खींचेगा तो कोई कावा पिलाएगा। कोई पॉपकॉर्न देगा तो कोई फ़्रूट प्लेट। कोई हस्तकला की चीज़ वस्तु देगा तो कोई नक्काशी गहने। कोई केसर बेचेगा तो कोई शिलाजीत। पूरा बाज़ार आपके साथ चल आपसे बातें कर रहा है। यहां पानी में ही दुकानें लगी हैं और कुछ लोग पानी के उपर बने घरों में रहते है। घर की महिलाएँ कुछ चीज़ लेनी हो तो शिकारा लेकर चल पड़ती है। शिकारा लिया, किनारे पहुँचे, बाज़ार गए, सामान लिया और शिकारा लेकर फिर घर पहुँच गये। है न अद्भुत? जुब्बार हमारा शिकारेवाला था। नेक मुसलमान था। ज़िंदगी और मौत अल्लाह की देन है ऐसा समझता है इसलिए कुछ भी हादसे हो अपने मन का बोझ नहीं बढ़ाता। लेकिन फिर भी पहलगांव दुर्घटना से पर्यटन बंद होने से वह भी परेशान था। किसने किया? क्यूँ किया? इन सवालों के जवाब वह खोज रहा था। कश्मीरी अपने पेट पर लात थोड़ी मारेगा? यह मीडिया और कुछ लोग कश्मीरियों को क्यूँ बदनाम करते है? हमारे बच्चे दूसरे शहरों में रहते हैं उन्हें क्यूँ मारोगे? हम वैसे नहीं है जैसा आप समझते हो। हम मेहमानो का और उनके धर्म का आदर करते है। वे हमें रोज़गार देते है। हमें अमन चाहिए, रोज़ी रोटी चाहिए और प्यार मोहब्बत। बात करते करते जुब्बार अपनी पीड़ा दबाने डल झील में कौनसी फ़िल्म शूट हुई वह बताने में लग गया।या हूँ, शम्मी कपूर की अदाँ को कौन भूल सकता है? शिकारें में बैठकर देखी डल झील और श्रीनगर की सुंदरता मनोहर थी। बस देखते ही रहो। एक घास काटने की बड़ी मशीन चल रही थी। जुब्बार ने कहा यह पैसे बनाने की मशीन है। उपर उपर से घास काटती है इसलिए जहां से कटा वहाँ और दस घास निकल आती है। इस मशीन का काम कभी ख़त्म नहीं होना है। चलाना है और पैसे बनाना है। बातों ही बातों में एक सवा घंटा कहाँ गुज़र गया पता ही नहीं चला। लवंडर पॉइंट, नेहरु गार्डन, मीना बाज़ार इत्यादि भ्रमण कर हम जब लौटे तो मन शांत और हल्की प्रसन्नता से भरा था। दिन भर चढ़ी थकान उतर गई थी। शाम के छह बजे थे। लाल चौक की घड़ी ने छह घँटे बजे तब हम उसके सामने थे। पूरा बाज़ार पैदल घुमें और बच्चों के लिए कुछ ख़रीदा और ₹ ५० किराया देकर रिक्शा में बैठकर ८ बजे सर्किट हाऊस आ गये।
यहाँ लोग दिलवाले है। उनकी हर बात पर अल्लाह का नाम होता है। वे हर पल उसको याद करते है और उसकी दुआ करते है। उनके जीवन की हर घड़ी और हर घटना को वे अल्लाह की मर्जी या देन समझते है। मुसलमान मतलब अपने इमान पर मुकम्मल ऐसा समझते हो वे भला बुराई के रास्ते पर कैसे जाएँगे। १९९० का वक्त अलग था आज अलग है। वर्तमान केन्द्र सरकार की युनिफार्म फॉर्स ने समग्र प्रदेश की स्थिति को इतने अच्छे से नियंत्रित किया है कि लोग अपने अमन चैन बढ़ाने में लग गए थे। पीछले कुछ वर्षों में बढ़े पर्यटकों ने कश्मीरीयों की सोच में बड़ा बदलाव पैदा किया है। उन्हें समझ में आया है वे हमारे मेहमान है, उनकी जेब से खर्चा कर वे हमारा जीवन समृद्ध करने आए है। उनके आने से आय बढ़ी है, सुख सुविधा बढ़ी है। केन्द्र सरकार ने सुंदर सड़कों का निर्माण किया है और वंदे भारत ट्रेन शुरू की है। टनल बनाकर मार्ग लंबाई कम कर यातायात को तेज बनाया है। फिर भी पहलगांव हादसे ने इस साल के प्रवासन पर कुठाराघात कर दिया। जिस पर शकील ने दो लाइनें बनाई।
रोती है कश्मीर हमारी रोते है इन्सान।
शायद हमसे रूठा है हमारा हिंदुस्तान।
पूनमचंद
श्रीनगर
५ मई २०२५
सरजी
ReplyDeleteनमस्कार
इतनी बड़ी दुर्घटना के पश्चात भी आपने कश्मीर घूमने की हिम्मत दिखाई वाह ।
किन्तु उसमें निर्दोष हिन्दुओं की शिनाख्त कन्फर्म कर नृशंस हत्याएं की यह लोकल सपोर्ट के बिना संभव नहीं ।वहाँ के मुसलमान भोले बनते हैं,हैं नहीं ।1990 में भी पड़ोसियों ने ही चांवल के ड्रम में छिपे पंडित का पता बताया था तब आतंकी कामयाब हो पाए थे ।आज भी वे लोगों के मारे जाने से नहीं पर्यटन ख़त्म होने के लिए रो रहे हैं ।अब उन आतंकियों का,स्लीपर सेल्स का,उनके समर्थन में बोलकर दुश्मन पाक को मदद करने वाले नेताओं का तथा आतंकवाद का पालक-पोषण करने वाले पाकिस्तान का श्री नरेन्द्र भाई मोदी नामोनिशान मिटाने जा रहे हैं । उसे खंड-खंड कर भारत वर्ष को पुनः अखंड बनाने का उत्तरदायित्व परमात्मा ने उन्हें सौंपा है और वे अवश्य सफल होंगे ऐसी 140 करोड़ देशवासियों की हार्दिक इच्छा है ।समूचा विश्व जिसमें तुर्कीए के सिवा सभी मुस्लिम देश भी शामिल हैं समर्थन में ।भारत के लिए यह स्वर्णिम अवसर तो है ही गर्व करने का समय भी है जो मोदीजी की कुशल विदेश नीति,कूटनीति ने हमें विश्व का मित्र बनाया है ।
भारत की इस उपलब्धि पर देश प्रेमी होने के नाते आप भी निश्चित रूप से गर्व का अनुभव करेंगे ऐसा हमें विश्वास है ।
आपकी सुखद,सुरक्षित यात्रा के लिए हार्दिक बधाई ।आदरणीया सौ.भाभीजी को सादर प्रणाम ।लक्ष्मी के बिना नारायण भी पूर्ण नहीं है तो फिर पूनमचंद जी कैसे?😂