गुलमर्ग चलें या दूधपथरी?
कितनी ख़ूबसूरत यह तस्वीर है, मौसम बेमिसाल बेनजीर है, यह कश्मीर है। गुलमर्ग (Meadow of Flower) सफ़ेद लवंडर फूलों की वादि, चारों और हरियाली, और पीछे पीर पंजाल के पर्वत, चीड़ और फर-देवदार के पेड़, क्या इससे ज्यादा ख़ूबसूरत कोई हो सकता है? यहां न जाने कितनी फिल्में शूट हुई, कितनी एड बनी, कितने हज़ार लाख पर्यटक आए लेकिन इसकी ख़ूबसूरती बनी रही वही। सर्दियों में गुलमर्ग का कोई मुक़ाबला नहीं। हम सुबह नौ बजे श्रीनगर से चले तब धूप थी, ग्यारह बजे गुलमर्ग पहुँचे तब काले बादल छाए थे और बारह वजे जब चलने का इरादा किया तो बरसात ने रोक लिया। कुदरत कह रही थी सब ऋतुओं का आह्लाद लेकर चलो। जैसे ही मैंने बरसती बूँदों को देखकर शाहरुख खान की तरह अपना हाथ खोलकर फैलाया कि सैफवाला गाना याद आया.. जब भी कोई लड़की देखूँ मेरा दिल दिवाना बोले ओले ओले ओले ओले… और ओले गिरने शुरू हो गए और दूसरे ही पल लक्ष्मी मेरी बाँहों में आ गिरी। एक ही तो लड़की थी उस पल इन भरी वादियों में। ओले और बरसात के मौसम का हमने चाय की चुस्की लेकर उपभोग किया और बरसती बरसात में हमने गुलमर्ग छोड़ दूधपथरी का रास्ता लिया।
बारिश तो पहाड़ उतरते ही रूक गई थी इसलिए हमने मगाम पर मकबूल आर्ट्स की शॉप पर एक ब्रेक लिया। शॉप कीपर ने कावा पिलाकर हमारा स्वागत किया। यह सलवार सूट साड़ियाँ और हेन्डीक्राफ्ट की एक सुंदर दुकान है जहाँ विविधता मिल जाएगी। इरशाद खान और उनके साथी रउफ शाह विवेकी और अपने काम में होशियार लगे। कन्नी वीवींग का एक सूट लक्ष्मी को पसंद आया लेकिन सूट की लंबाई ज्यादा होने से बात नहीं बनी। मगाम से हमने अंदरूनी रास्ते से दूधपथरी का रास्ता लिया। सरकारी एडवाइज़री के चलते दूधपथरी पर्यटन के लिए बंद है। हम वहाँ न जा सकते थे और न तोशा मैदान की ख़ूबसूरती को पी सकते थे परंतु उस तरफ़ जा रही सड़क के आसपास की सुंदरता मन लुभावन थी इसलिए हमने सफ़र कर ली। थोड़ी थोड़ी देर एकाध दो कार मिलती वर्ना सब ख़ाली ख़ाली सा था। रास्ते में छोटे छोटे गाँव आए। सड़क की दोनों तरफ़ बने सुंदर घर युरोपियन आर्किटेक्ट से बने थे जो प्रवासी को युरोप के किसी गाँव से सफ़र करने का आनंद दे रहे थे। थोड़े घर फिर खेत ऐसे ही सड़क चलती गई। दो तीन कनाल (१ कनाल =१००० मीटर) जितने छोटे छोटे खेतों में कहीं सरसों तो कहीं धान बोया दिखता था। खेतों के पीछे बड़ा मैदानी इलाक़ा और उसके पीछे हरे रंग के हल्के और भारी रंग लिए पहाड़ियाँ एक सुंदर प्राकृतिक दृश्य का निर्माण कर रही थी। गुलमर्ग सफ़र से यह कोई कम नहीं था। गाँव में बने मस्जिद के मकान भी आकर्षक थे। कहते हैं अंदर से भी सुंदर होते हैं। हम जैसे जैसे आगे बढे प्राकृतिक सौंदर्य वढ रहा था और साथ साथ लोगों की गरीबीी। दोपहर ढाई बज रहे थे और पेट में चूहे दौड़ रहे थे इसलिए दूधपथरी के पास चिल्लन गाँव आया वहां हम रूके। शकील ने फ़ोन कर रखा था। वह हमें फरीदा और शब्बीर के घर लंच करने ले गया। यह युगल दूधपथरी पर्यटक स्थान पर अपना स्टोल लगाकर पर्यटक मेहमानों को खाना खिलाकर उसी रोज़ी से अपना और अपने परिवार का गुज़ारा कर रहा था। युगल और उनके बच्चों ने बड़े प्यार से हमारा सत्कार किया। एक हॉल में बिठाया। ओढ़ने को रज़ाई और हाथ सेकने कांगड़ी दी। फरीदा ने फ़्रूटी ज्यूस से वेलकम ड्रिंक सर्व किया। सुराही बर्तन के पानी से हमारे हाथ धुलवाए। फिर ताजे सरसों का साग, घी में तली मक्के की पतली पतली रोटियां, घर के पनीर की सब्ज़ी, अचार और दही का लंच परोसा। गाँव की ताज़ी सब्ज़ी और रोटी हो और उपर गाय का घी लगा हो, स्वाद आ गया। बातें करते करते परिवार का पता लगाया तो दूधपथरी पर्यटन बंद होने से वे बेरोजगार हो गए है। शब्बीर मिस्री के साथ मजदूरी करने जाता है और फरीदा एक पश्मीना शॉल नीडल भरत करने ले आई है जो बारह दिन में पूरा करेगी जिससे कुछ पैसे मिलेंगे। लेकिन काम हमेशा नहीं मिलता। लंच के बाद उचित रक़म भेंट कर जब हम चले तो फ़रीदा ने दबी आवाज़ में कहा, सर, सरकार को कहिए न, हमारा दूधपथरी पर्यटन के लिए खोल दे। हमारे बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते है लेकिन पर्यटन रुकने से हमारी रोज़ी रोटी बंद हो गई है। हर दिन खर्चा निकालकर ₹५००-१००० कमाते थे, वह बंद होने से बच्चों को खिलाने की चिंता बढ़ी है। शब्बीर मिस्त्री के मजदूर के रूप में काम करेगा लेकिन अगर पर्यटन बंद होगा तो मकान कौन और कैसे बँधवायेगा? हमारे लिए तो रोज़ी रोटी कमाकर बच्चों और परिवार का पालन करना पहला धर्म है। हम हिंदुस्तानी है हमारा पाकिस्तान से क्या वास्ता?
फरीदा और शब्बीर के घर खानेवाले आठ लोग और दैनिक रोज़गार बंद हो गया। पति-पत्नी, दो बच्चे, दो बहने और माता पिता। फरीदा-शब्बीर जैसे हज़ारों कुटुंब हैं जिनकी रोज़ी रोटी प्रवासन पर टिकी है। पहलगांव त्रासदी की वजह से सरकार ने ४५ जितने पर्यटन स्थलों को सुरक्षा हेतु बंद तो किया लेकिन उस पर टिके हज़ारों गरीब कश्मीरी और गरीब हो गए। भारत एक मज़बूत देश है। अंदर और बाहरी शत्रुओं से लोहा ले सकता है। इसलिए स्थिति को जल्द सामान्य कर, प्रवासन की सुरक्षा बढ़ाकर, कश्मीर के हज़ारों परिवारों के रोज़गार की चिंता कर, एक के बाद एक पर्यटन स्थल खोल देने में जनहित है ऐसा लोकमत सुनाई दे रहा था।
शाम होते होते गुलमर्ग में कमाया रोमांच, मगाम-दूधपथरी सड़क का सौंदर्य और सरसों के साग और मक्के की रोटी का स्वाद कश्मीर के गरीब परिवारों की वेदना को जानकर ग़ायब हो गया था। उनके कल्याण की कामना ने मेरा क़ब्ज़ा कर लिया था। शकील कह रहा था पहलगांव में निर्दोषों को मारनेवाले मुसलमान नहीं क़ातिल थे। उन्हें पकड़कर ज़िंदा जलाना भी कम सज़ा होगी। उन्होंने २६ परिवारों को तो उजाड़ा लेकिन प्रवासन रोज़गार पर हमला कर उन्होंने हज़ारों काश्मीरी परिवारों और उनके बच्चों के मुँह का निवाला छीन लिया। उनका मकसद कश्मीर के प्रवासन को नुक़सान पहुँचाने का था जो उन्होंने कर दिया। पता नहीं अब अच्छे दिन फिर कब लौटेंगे?
पूनमचंद
श्रीनगर
४ मई २०२५
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