हिंदुस्तान के दर्शनो में हमारे अस्तित्व के रहस्य के उत्तर मिलते है। दर्शन बताता है कि हमारा दर्शन अनुभवगम्य है कोई किताबी बातें या बौद्धिक संवाद मात्र नहीं।
हम हैं एक जोड़ के रूप में। पुरुष और प्रकृति का जोड़। जोड़ का एक हिस्सा है पुरुष जो चैतन्य है, अजर, अमर, अविनाशी, नित्योदित, पूर्ण, अपरिवर्तनशील, दुखों से मुक्त। ना कभी जन्मा है, ना उसकी उम्र है, ना परिवर्तनशील है, ना वृद्ध होगा ना मरेगा। सबका पुरुष एक है इसलिए श्रीराम हो, श्रीकृष्ण हो, बुद्ध हो; सम्राट अशोक हो, चंद्रगुप्त द्वितीय हो या हर्षवर्धन हो; बाबर-अकबर-औरंगज़ेब हो; अँग्रेज अमलदार हो; गांधी-नेहरु-सरदार हो; या वर्तमान किरदार हो, हम सबका पुरुष तो एक ही है जो दिव्य है, परम है।
दूसरा जोड़ है हमारा शरीर, इन्द्रियाँ और अंतःकरण (मन, बुद्धि, अहंकार)। इसे प्रकृति कहते हैं जो परिवर्तनशील है। उसके परिवर्तन को ही जन्म, जरा, व्याधि, सुख, दुःख, मृत्यु, पुनर्जन्म की परिभाषा लगती है। यही पुर्यष्टक को ही पीड़ा है, बंधन है और मुक्ति की प्यास है।
एक किसान था। एक बड़ी सी ज़मीन का मालिक था। उसे किसी जानकार ने बताया कि उसकी ज़मीन की गहराई में सोना है। लेकिन कहाँ और कितना भीतर इस जानकारी के अभाव में वह अपने आप प्रयास करता रहे तो कहाँ तक पहुँचेगा? लेकिन अगर जानकार आदमी बता दें कि इस जगह इतना भीतर, सोना ढूँढने का काम सरल हो जाएगा।
हमारा सोना-पुरुष अपने पास है, जिसे पाना है वह हम हैं ही, फिर नज़र क्यूँ नहीं आ रहा? इसे ही अज्ञान या मलावरण कहा है। इसे हटाने किसान को किसी जानकार ने बताया इसी तरह शास्त्र और गुरु काम आते है जो हमारे भीतर रहे पुरुष (दिव्यता) को पहचानने में मदद करें।
क्या किसान ने सुना कि उसकी ज़मीन के भीतर सोना है यह सुनने से सोना मिल गया? नहीं। इसी प्रकार हम पुरुष है, अजर, अमर, अविनाशी है इतना शब्दों से जान लेना पर्याप्त नहीं हैं? साधक को मार्गदर्शन चाहिए शास्त्र और गुरु का। जैसे किसान ने अपनी ज़मीन की खुदाई खुद की इसी प्रकार साधक को चाहिए अपनी खोज खुद करनी है। खोज कहाँ? जो है ही, लेकिन अज्ञान के आवरण की वजह से पहचान नहीं पा रहा है।
खुद की खुदाई के औज़ार है श्रवण, मनन, निदिध्यासन। मार्गदर्शन को ध्यान से सुनना, पढ़ना और समझना, शास्त्र भी प्रथम पुरुष में पढ़ने है क्यूंकि अपनी बात है; उसके बारे में जो प्रश्न उठे उसे पूछकर, मनन कर उस प्रश्नों का समाधान करना; और उस समझ को, ज्ञान को जीवन में उतारना। तभी तो पहचान होगी पुरुष की, चैतन्य की और फिर नजर बदलते ही सम्यक दृष्टि प्राप्त होगी, भीतर बाहर एक ही चैतन्य के दर्शन होते ही राग द्वेष से छुटकारा होगा, षड्रिपु से मुक्ति होगी, अरिहंत बनेगा, जितेन्द्रिय होगा, कैवल्य को प्राप्त होगा। वो जो है उसे साध लिया, जो प्राप्त था उसे प्राप्त कर लिया, सिद्ध हो गया।
बस एक जोड़ का सवाल है। जवाब जुगाड़ नहीं, श्रवण मनन निदिध्यासन है।
६ अगस्त २०२५