Wednesday, May 24, 2023

 उद्यमो भैरवः। 


हम मनुष्य है। पृथ्वी पर है। वायुमंडल का सहारा है। ओक्सिजन हमारा जीवन है। पर वह ओक्सिजन लेने की और कार्बन डाइआक्साइड छोड़ने की शक्ति कहाँ से आती है? पंच तत्वों से बने हमारे यह भौतिक शरीर जैसे हवा के दरिये में नाक लगाकर इधर-उधर भागदौड़ रहे है। जिस दिन पुर्यष्टक की शक्ति ख़त्म हुई नाक जमाकर ओक्सिजन लेने का मानो खेल ख़त्म। बाद में क्या होगा किसी को नहीं पता? जो मरा वह मरने के बाद क्या हुआ वह बताने लौटा नहीं और जो ज़िंदा है उसे मौत का अनुभव नहीं। स्वभाव और संस्कारों के विभाजन से हिन्दू उसे पुनर्जन्म के चक्कर में भेजेगा। ईसाई न्याय के दिन की और मुसलमान क़यामत के दिन की प्रतीक्षा करेगा। हिन्दू की गाड़ी कर्म के सिद्धांत पर चलती रहेगी और ईसाई मुसलमान पृथ्वी हॉल में अपनी अपनी परीक्षा देकर परिणाम के दिन का इंतज़ार करेगा। तीनों ही स्थिति में आत्मा या रूह को नश्वर नहीं माना। तीनों ही ईश्वर या अल्लाह की सत्ता को क़बूल करते है। तीनों उसकी पूजा, प्रार्थना और नमाज़ करते है।  हिन्दू का ईश्वर यत्र तत्र सर्वत्र होने से इस लोक में अपने भीतर खोज सकता है अथवा देव देवियों की पूजा द्वारा परलोक का अनुसंधान कर लेता है। ईसाई और मुसलमान के लिए न्यायाधीश किसी सातवें आसमान पर बैठा है जो न्याय कर इनाम देगा या शिक्षा करेगा। स्वर्ग नर्क का विभाग तीनों धर्मों ने रखा है। 


हिन्दूओं का भगवान भीतर बैठा है इसलिए वह उससे कहीं दूर भाग ही नहीं सकता। वह जहां भी जायेगा, जो भी करेगा, और कोई देखे न देखें, लेकिन खुद को देखने से छिपा नहीं सकता। वही चित्रगुप्त (चित्त) है जो हिसाब रखता है, और अपनी गति नियत करता है।


कौन है यह महाशय, जो आँख खोलकर, अविराम, अहर्निश देखता रहता है? कौन है जो आँख की भी आँख, काम के भी कान, नाक का भी नाक, दशेन्द्रियों, मन, बुद्धि, अहंकार का स्वामी और प्राणों का भी प्राण है? 


अहं। अहंकार में वह खंडित हुआ दिखता है लेकिन अहंभाव में वह दरिया है। लबालब चैतन्यघन दरिया। जैसे मेरा ओक्सिजन और आपका ओक्सिजन कोई अलग-अलग नहीं, मात्र ग्रहण करने के नाक और फेफड़े अलग-अलग होने से अलगता दिखती हैं वैसे ही मेरा चैतन्य और आपका चैतन्य अलग-अलग नहीं। एक ही चैतन्य बोध सत्ता है जिसके प्रकाश से यह शक्ति खेल चल रहा है। 


इस प्रकाश की पाँच शक्ति है। इच्छा, ज्ञान, क्रिया, निग्रह और अनुग्रह। परम चैतन्य दरिया की स्थिति में यह शक्तियाँ असीम है और बिंदुरूप जीव चैतन्य में सीमित। परंतु दोनों ही स्थिति में चैतन्य सत्ता में कोई बदलाव नहीं। जैसे बड़ी आग होगी या एक चिनगारी, अग्नि की दाहकता नहीं बदलती, वैसे चैतन्य सत्ता शिवभाव और जीवभाव दोनों में निहित है। 


सवाल ज्ञान/बोध के संकोच और विस्तार का है। चयन है अपना अपना, संकोच करें या विस्तार। संकोच करने से तो यह जगत की जीवन लीला चल रही है। 


शक्ति द्विमुखी है, दोनों ही स्थिति में तटस्थ है। जैसा चयन करेंगे उसके अनुरूप ईंधन पहुँचायेगी। शक्ति स्वातंत्र्य है। वामेश्वरी रूप में अस्तित्व बनकर खड़ी है और खेचरी, गोचरी, दिग्चरी, भूचरी रूप से शिव के संकोच को जीव के खेल में और विस्तार को शिवभाव की शक्ति देती रहती है। किस ओर जाना है, हमें तय करना है। अपने वाडे में बंद होकर भोगों की चुसकियाँ लेते रहना है या सामरस्य और सर्व समावेश्य से शिवभाव धारण करना है। 


असीम कालातीत और देशातीत है। सीमित को काल खायेगा और देश भटकेंगा। अगर पुनरपि जननम् पुनरपि मरणम् में मज़ा ही है तो कुछ करने की ज़रूरत नहीं। हाँ, खबर रहे कि इस बार जो मिला है वह दूसरी बार न भी हो। इस बार मंदिर के पुजारी हो दूसरी बार भिखारी हो सकते हो। इस बार हिन्दू हो दूसरी बार मुसलमान हो सकते हो। इस बार मनुष्य हो दूसरी बार भेड़ बकरी गाय कीट पतंग में नम्बर लग सकता है। भगवान बुद्ध ने इसलिए ही इसे दुःखालय माना है। दुःख है, तृष्णा दुःख का कारण है, तृष्णा के त्याग से दुःख मुक्ति है और निर्वाण के लिए अष्टांग मार्ग है। 


चयन अपना है। पुनरपि जननम में मज़ा है तो बस चलते चलो। अगर प्रश्न है तो ज़रा ठहरो। परीक्षण करो। क्या हो रहा है यह सब? क्यूँ हो रहा है? यहाँ पृथ्वी लोक पर हर क्षण अनंत जीव प्रकट हो रहे हैं और अनंत नष्ट हो रहे है।व्यक्त अव्यक्त की यह श्रृंखला ख़त्म ही नहीं होती। पूरे ब्रह्मांड में रेत के कण जैसी हमारी पृथ्वी और उसका एक छोटा तिनका हम कैसे विराट को लेकर विराट में छिपे बैठे है? उसे प्रकट करना है। उसकी प्रत्यभिज्ञा, पहचान करनी है। 


हे विराट के सागर, यूँ क्यूँ मायूस बनकर बैठा है? “उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत।” उठो, जागो और स्वरूप बोध की प्राप्ति में लग जाओ। जाग जाओ। जागते ही भोर है। 


उद्यमो भैरवः। 

विस्मयो योगभूमिका। 

वितर्क आत्मज्ञानम्। 

गुरुरुपायः। 

चैतन्यमात्मा। 


पूनमचंद 

२४ मई २०२३

2 comments:

  1. Excellent and mind blowing article, real way for sadhna/ selfrealisatiin. Thanks Respected Sirji. 🙏🌹🙏

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  2. ........@Gs Bokhani

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