Saturday, May 27, 2023

बात अगर निकली हैं तो दूर तलक जाएगी।

 बात अगर निकली हैं तो दूर तलक जाएगी। 


“खाते स्वामी” आत्मानंद जी ने अपनी एन्टार्टिका यात्रा के विराम स्थल अशुआइया की कहानी बताई। किस तरह उनको रेस्टोरेन्ट में खाने का निवाला मुँह में रखते ही ललिता त्रिपुर महासुंदरी और शिव की हाज़िरी महसूस होती थी। एक देख रहा था दूसरी भोग लगा रही थी और व्यक्ति अहंकार उस प्रकिया में विह्वलता और अचरज के सिवा और कुछ कर ही नहीं सकता था। उन्होंने ने समाधान शिक्षा दी की पहला निवाला और पहला घूँट उनको अर्पण करने से वह दोनों हमारा खाना बन जाएँगे। 

वह ‘खाना’ अर्थात् यह दृश्यमान जगत जिसे हम पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और मन बुद्धि अहंकार के तेरह साधनों से भोग रहे है। यह विश्व वास्तव में वही विराट रूप ललिता त्रिपुर सुंदरी है और उसकी चेतना स्वयंभू शिव। वही स्पन्द है। खाना (विश्व) है तो वह दोनों मौजूद, वर्ना ग़ायब। अगर पहले निवाले का अभ्यास लगातार करते रहेंगे तो उनकी हाज़िरी हक़ीक़त बनती जाएगी। हक़ीक़त क्या हक़ीक़त है। वही है। और कुछ भी नही। शक्ति और शिव। शिव शक्ति। उमामहेश्वर, राधाकृष्ण, सीताराम। कुछ भी नाम दे दो। पकड़ना को एक ही को है। 

पकड़ना क्या? क्षोभ से बाहर निकालो। आत्मबल स्पर्श की ही तो ज़रूरत है। स्वरूप में संकोच विकास कैसा? बहिर्मुख विश्वात्मकता है और अंतर्मुख स्वात्म संकोच। उच्छलन और किंचित् चलन.. स्फूरणा चैतन्य का स्वभाव है। स्वात्म उच्छलन आत्मक। स्वात्मा पर ध्यान दो। सहजता पर ध्यान दो। सहजता अकृत्रिमता (original) और यथार्थ (real) है। चैतन्य में रहना सीखना है। चैतन्य में खाना पीना सीखना है। तेरह का सब खेल चैतन्य में रहकर करना है। तेरा तेरा करना है और मेरा मेरा मिटाना है। 

तभी तो विद्या प्रकट होगी। प्रत्यभिज्ञा होगी। आनंदमयी है, अपने आप चमक उठेगी। फिर हमें प्रमाण के लिए किसी को पूछने नहीं जाना है।  फिर शास्त्रों की ज़रूरत नहीं। शास्त्र बन जाएँगे। 

शक्ति के प्रति जागरूक बनते ही वार्तालाप शुरू हो जाएगा। यहाँ कोई मरा नहीं। अमृत का सरोवर (अमृतसर) है। चैतन्य है। चमत्कृत है।नित्य नवीन है। नित्योदित है। चिद्रुप है। 

इसलिए यहाँ कुछ भी गर्हित नहीं। ना मंदिर ना मसजिद। ना ऊँच ना नीच। सबकुछ शिवशक्तिरूपा सामरस्य है। वही है तो फिर विरोध किसका? 

स्वानन्द रस क़िल्लोलै रूल्लसन। शिवशक्ति के किल्लोल में तरबतर हो उठे। 

अथग, भगीरथ, सहज, अकृत्रिम, यथार्थ, प्रयास करें। सुंदरी और सुंदर हम ही है। आत्मबल स्पर्श की कामना कीजिए और क्षोभ सब छोड़िए। 

पूनमचंद 
२७ मई २०२३

0 comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.