Sunday, July 24, 2022

चैतन्य प्रकाश।

 चैतन्य प्रकाश। 


एक पब्लिक सर्विस कमीशन का वर्ग १-२ पदों के लिए इन्टरव्यु चल रहा था। उम्मीदवार एक के बाद एक बोर्ड के समक्ष आ रहे थे और अपने ज्ञान और व्यक्तित्व का परिचय दे रहे थे। महिलाएँ भी थी परंतु उनमें दो महिला उम्मीदवारों का इन्टरव्यु विशेष रहा। 


दोनों एक के बाद एक जवाब बड़े ध्यान और एकाग्रता से दे रहे थे। मैं अचंभित था। इतनी समझ, इतना ठहराव और इतना विश्वास कैसे? हम पूछते रहे और वो जवाब देते रहे और आख़िर में उस दिन के दिये गये सबसे ज़्यादा गुण उन्होंने ले ही लिए। 


मेरा ध्यान प्रश्न पूछने, उनके जवाब और व्यक्तित्व के मूल्यांकन के साथ साथ अपने आप पर भी था। सोच रहा था पिछले सब उम्मीदवार अपने पाँच ज्ञानेंद्रियों के साथ जो नहीं कर सके यह इन्होंने कैसे कर लिया?


हम सब जानते हैं और अभ्यास भी कर रहे हैं एक महत्वपूर्ण इन्द्रिय से। यह जो दृश्यमान जगत है, खंड खंड विभाजित दिख रहा है उसमें दिख रहे अखंड विश्वोर्तीर्ण शिव-शक्ति को देखने का प्रयास कर रहे है। जो भी देख रहे है अपनी ही लाइट से प्रकाशित है। अगर अपनी लाइट गुल हुई तो सब गया। उसका शब्द स्पर्श रूप रस गंध हमें लुभाता है और कभी कभी डराता भी है। लेकिन क्या जानते हैं कि इन सब अभ्यासों में अगर चक्षु इन्द्रिय का साथ न हो तो कितना बड़ा विक्षेप हो जायेगा। जब कुछ दिखेगा ही नहीं तब कैसे उस अंधेरे में जल रही रोशनी का और उस रोशनी में प्रकाशित विश्व का सही अनुभव कर सकेंगे? जब देखना ही नहीं रहा फिर कैसे कहेंगे के मैं ऐसे देख रहा/रही हूँ या वैसे देख रहा/रही हूँ। 


परंतु वो दोनों महिला वैसे ही देख रही थी और जवाब दे रही थी जैसे चक्षुवालें उम्मीदवार। उनसे भी अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। वे दोनों  प्रज्ञाचक्षु थे। आँख देख नहीं सकती थी फिर भी वह कोन था जो उनके पथ को प्रदर्शित कर रहा था? वे कान से सुन रहे थे, बुद्धि से समझ रहे थे और ज़रूरी विश्लेषण कर विवेकपूर्ण जवाब दे रहे थे। कौन था उनके कान का कान? उनकी समझ का प्रकाश? चैतन्य प्रकाश।


केनेषितं पतति प्रेषितं मनः केन प्राणः प्रथम प्रैति युक्तः। केनेषितां वाचमिमां वदन्ति चक्षुः श्रोत्रं क उ देवो युनक्ति ॥ (केनोपनिषद् १.१)


(यह मन किसके द्वारा इच्छित और प्रेरित होकर अपने विषयों में गिरता है। किस प्रयुक्त होकर प्रथम प्राण चलता है। किसके इच्छित वाणी बोलता है। कौन देव चक्षु और श्रोत्र को प्रवृत्त करता है।)


यह जीवन किसके द्वारा प्रेरित है? वह कौन है? वह कौन है, जो हमारी वाणी में, कानों में और नेत्रों में निवास करता है और हमें बोलने, सुनने तथा देखने की शक्ति प्रदान करता है?


हमारा ध्यान उजालेवाले प्रकाश से बाहर नहीं हट रहा है इसलिए वह जो भीतर का प्रकाश है उसकी बात बैठ नहीं रही। उसी प्रकाश से ही तो यह सब सूर्य, नक्षत्रों, तारें, पंच महाभूत, सृष्टि, जीव, हमारा स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर प्रकाशित है। उस प्रकाश की गहराई में उतरिए जहां कोई अंधकार नहीं। जाग्रत स्वप्न और सुषुप्ति का एक सूत्र रूप तुरीया, तुरीयातीत। जहां कोई पीड़ा नहीं। अपूर्व शांति, जागरण और प्रेम का क्षेत्र। जहां सब कोई एक हो जाता है। शिव। शिवोहम्। अहम हमारा व्यक्ति तक रहा तो अहंकार है लेकिन उस अहम जो सब में है और वही तो यह रहस्य का मालिक है जो आपका, मेरा, सबका एक है। 


🕉 नमः शिवाय। 


पूनमचंद 

२४ जुलाई २०२२

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