Saturday, May 10, 2025

कश्मीर का पेच।

इस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता, जिस मुल्क की सरहद की निगाहबान है आँखें। कश्मीर भारत का सरताज और अभिन्न अंग है इसे कोई ताक़त ले नहीं सकती। हमारे फौजी उसकी सुरक्षा के लिए समर्थ है। जम्मू, कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 2,24,739 वर्ग किलोमीटर है जिसमें 45% भारत के पास और 55% पाकिस्तान-चीन के पास है। भारत के कब्जे में 1,01,338 वर्ग किलोमीटर (45%), पाकिस्तान के कब्जे में 85,846 वर्ग किलोमीटर (38 %) और चीन के कब्जे में 37,555 वर्ग किलोमीटर (17 %) है। भारत के कब्जे में जम्मू कश्मीर और लद्दाख को मिलाकर 1,01,338 वर्ग किलोमीटर हिस्सा है, जिसमें से कश्मीर घाटी 15,520 वर्ग किलोमीटर, लद्दाख 59,146 वर्ग किलोमीटर और जम्मू क्षेत्र 25,294 वर्ग किलोमीटर है। जबकि पाकिस्तान के कब्जे में जो 85,846 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है उसमें आज़ाद कश्मीर 13,297 वर्ग किलोमीटर और गिलगिट-बाल्टिस्तान का उत्तरीय इलाक़ा 72,496 वर्ग किलोमीटर है। पाकिस्तान ने 1963 समझौता कर शक्षगाम घाटी का 5,180 वर्ग किलोमीटर हिस्सा चीन को दिया था जिसके साथ लद्दाख क्षेत्र का अक्साई चीन को मिलाकर कुल 37,555 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन दबाकर बैठा है। हम चीन से अक्साई चीन की माँग करते हैं और वह हमसे अरूणाचल प्रदेश का 90,000 वर्ग किलोमीटर माँगता है। इस प्रकार भारत की उत्तर और उत्तर पूर्व सरहद सात-आठ दशकों से विवादों में फँसी है जिसके कारण भारत और पाकिस्तान को अपने संरक्षण का भारी बोझ उठाना पड़ रहा है। पाकिस्तान को बहुमत मुसलमान प्रदेश चाहिए, चीन को अपने व्यापार को पश्चिम से जोड़ता लद्दाख क्षेत्र छोड़ना नहीं है और भारत अपने ताज को रखेगा ही, इसलिए यह मसला जैसे थें को मानकर समझौता किए बिना शायद हल होनेवाला नहीं। जम्मू क्षेत्र का क्षेत्र 26,293 वर्ग किलोमीटर जो भारत के कब्जे में उसका प्रश्न नहीं रहा। लद्दाख क्षेत्र (1,69,197 वर्ग किलोमीटर) के तीन हिस्से हुए, जिसमें से गिलगिट-बाल्टिस्तान का 72,496 वर्ग किलोमीटर (43%) क्षेत्र पाकिस्तान के पास, अक्साई चीन का 37,555 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (22%) चीन के पास और लद्दाख-भारत का 59,146 वर्ग किलोमीटर (35%) क्षेत्र भारत के पास है जो जैसे थे परिस्थिति में चल रहा है। अब बचा 28,817 वर्ग किलोमीटर का सुंदर कश्मीर घाटी क्षेत्र जो उबलता रहता है। कश्मीर घाटी को पश्चिम और दक्षिण पश्चिम की पीर पंजाल पहाड़ियाँ पंजाब के मैदानी क्षेत्र से अलग करती है और उत्तर और पूर्व में ग्रेटर हिमालय के पर्वत इसे लद्दाख और तिब्बत के साथ जोड़ते है। कश्मीर घाटी का मध्य और दक्षिणी क्षेत्र जो 15,520 वर्ग किलोमीटर (54%) है वह हिस्सा भारत के पास है और उत्तर पश्चिमी 13,297 वर्ग किलोमीटर (46%) हिस्सा पाकिस्तान के पास है। यह बँटवारा सिर्फ़ ज़मीन का ही नहीं था बल्कि प्रजा का भी था। घाटी के मुसलमान बहुमत होते हुए भी शेख अब्दुला के नेतृत्व में भारत के पक्ष में रहे और पहाड़ी मुसलमान सरदार मुहम्मद इब्राहिम ख़ान के नेतृत्व में पाकिस्तान के पक्ष में चले गये और आज़ाद कश्मीर बनाया। 1947-49 युद्ध चला फिर दोनों प्रजा को अपने अपने कब्जेवाले क्षेत्रों में सत्ता और नीति बनाने में प्रभावी होने में सहूलियत देखी इसलिए 1949 में समझौता कर LOC बनाकर दोनों उस वक्त शांत हुए। लेकिन विदेशी ताक़तों के ज़ोर से पाकिस्तान ने विवाद को जलते रखा। वह सीधे युद्धों में हारा इसलिए गुरिल्ला वॉर की तरह आतंकवादीयों को तैयार कर प्रोक्सी वॉर से वारदात करता रहता है। क्या था उन वाजपेयी-परवेज़ की आग्रा शिखर सम्मेलन (July 2001) के उस दस्तावेज में जिनका मसौदा तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह के पास था और जो होने को ही था और आख़िर में बात नहीं बनी? हमने 1949 में भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 लाकर कश्मीर को विशेष दर्जा दिया और 2019 में 370 हटाकर विशेष दर्जे को समाप्त किया। पाकिस्तान ने गिलगिट-बाल्टिस्तान को अपने में मिलाने का एलान किया था। मानो की कश्मीर घाटी मसला हल हो गया। जो इनके कब्जे में था वह उनका हो गया और जो हमारे कब्जे में है वह हमारा हो गया। लेकिन नये भारत को पूरा कश्मीर चाहिए। भारतीय क्षेत्र को देखें तो जम्मू और लद्दाख में कोई अलगाववाद नहीं है। लेकिन कश्मीर घाटी क्षेत्र खासकर दक्षिण कश्मीर और पाकिस्तान से लगा हुआ प्रदेश संवेदनशील बना हुआ है। लद्दाख का क्षेत्र चीन के व्यापारिक हितों की वजह से चीन को इस कहानी का पक्षकार बनाते है। इसलिए यह मसला अकेले कश्मीरी आवाम के जनमत का नहीं है लेकिन भारत, पाकिस्तान और चीन के अंतरराष्ट्रीय सरहद का है। कश्मीरी घाटी की प्रजा को दो हिस्सों में बाँटकर समझनी चाहिए। घाटी के कश्मीरी और पहाड़ी कश्मीरी। घाटी के कश्मीरी जो कि बहुसंख्यक सुन्नी मुसलमान है लेकिन उनके पूर्वज बौद्ध अथवा हिन्दू थे वे अभी के हालात में भारत में खुश है। जो पहाड़ी मुसलमान वहाँ गए है वे खुश है कि नहीं उसका इल्म नहीं। दोनों के बीच बैठे है बकरवाल। कश्मीर घाटी जंगलों और पर्वतों से घिरीं है इसलिए जंगलों पर्वतों के पूरे क्षेत्र को सुरक्षित करने बहुत सैनिक और संसाधन चाहिए। सैनिक बाहर से आता है और मिलिटन्टस स्थानिक इसलिए क्षेत्र के अपरिचय और परिचय का हानि लाभ उनको मिलता है। मिलिटन्टस शिकारी बिल्ली की तरह ताक़ लगाए बैठे रहते हैं और जैसे ही कोई क्षेत्र ख़ाली नज़र आया वार कर देते हैं और भाग जाते है। जहाँ फिदायीन मिला वहाँ उसे भी इस्तेमाल कर लेते है। मेरे कटरा-श्रीनगर सफ़र का कार ड्राइवर मोहम्मद अकबर कह रहा था कि साहब इन पाकिस्तान ट्रेंड मिलिटन्टस को कम मत समझिए। एक मिलिटन्ट अपनी शक्ति, साहस और रणनीति में भारत के पचास कमान्डिंग अफ़सरों से कम नहीं। उसकी बात में अतिशयोक्ति हो सकती है लेकिन मिलिटन्टस को कमज़ोर समझने की ग़लती भी नहीं करनी चाहिए। बकरवाल यहाँ दोनों के लिए मुखबिर (informer) का काम करते है। वह किस तरफ़ खेल रहे है यह बात घटना पूरी होने तक भरोसे पर चलती है। मौत का ख़ौफ़ किसी को भी पलट सकता है। इसलिए भारतीय सेना मिलिटन्टस को फंदे में फँसाती है कि मिलिटन्टस उसी जाल में उन्हें फँसा लेती है यह घटना पूरी होने तक कोई नहीं जानता। हो सकता है कुछ घटनाएँ उसके सही रूप में हमारे सामने न भी आए। हादसा मौत बन जाए या मौत हादसा। भारतीय कश्मीर घाटी के बहुसंख्यक मुसलमान अपने को हिंदुस्तानी समझते हैं और वे भारत में खुश है। लेकिन जब क़ौम की बात आती है तो वे संवेदनशील भी है। अनुच्छेद 370 का हटना उन्हें पसंद नहीं आया इसलिए केंद्र शासित असेंबली ने इसके लिए कुछ महिने पहले एक प्रस्ताव पारित किया। पुलवामा अटेक और पहलगाम त्रासदी करनेवालों को सज़ा ए मौत दो, ज़िंदा जलाओ उसका उन्हें विरोध नहीं है, बल्कि पक्ष में है। लेकिन जो लड़का भाग गया, लापता हुआ, पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखवाई, वह कुछ साल बाद कोई वारदात करे तो उसके माता पिता चाचा के घर बुलडोज़ हो जाए और साथ में अग़ल बगलवालों को भी नुक़सान हो उसका कुछ बडबोलों को विरोध है। पढ़े लिखे बेरोज़गार युवा के मिलिटन्ट बनने की कहानियों में ऐसे कोई न कोई असंतोष की छाया नज़र आती है। हाँ, भारतीय सेना के संयम की तारीफ़ करनेवाले भी बहुत हैं। ऐसी कोई घटना नहीं घटी जिससे किसी को शर्मिंदा होना पड़े।1971 से पहले पाकिस्तान सेना ने बांग्लादेश में मचाये ग़दर की ख़बरें उनको पता है। फिर भी सोशल मीडिया वीडियो से भरें रहते हैं जो जनमत को बनाते और बिगाड़ते रहते है। पहले तो कुछ सुनकर अफ़वाहें फैलती थी अब वीडियो गुमराह करते है। पुराना या नया, यहां का और कहाँ का, वीडियो के चित्र और आवाज़ें मनुष्य मन को भ्रमित करने पर्याप्त होते है। बुरे को सबक सिखाने जंग ज़रूरी है लेकिन पूर्ण समाधान नहीं है। पाकिस्तान के साथ चीन जुड़ गया तो हो सकता है यह लंबी चले। वैसे भी सेटेलाइट सेवा, इलेक्ट्रॉनिक्स, हथियार और साधन सरंजाम की मदद करने में वह पाकिस्तान के पीछे नहीं हैं ऐसा दावा कोई नहीं कर सकता। अमेरिका की अपनी रणनीति है। जिनके फ़ैक्ट्री में हथियार, फ़ाईटर जहाज़ पड़े हैं वे इस आपत्ति में बेचने का अवसर खोज रहे होंगे। भारतीय सरकार ने अपने विकास कामों से कश्मीरी प्रजा का दिल जीता है। दूसरे राज्यों में कम सही, यहां और धनराशि देकर प्रजा के दुःख दर्द को कम करने में सहायता देनी चाहिए। यहां शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा निःशुल्क है इसलिए लोग राज़ी है। लेकिन बिजली का बिल उन्हें महंगा पड़ता है। 200 युनिट के बाद युनिट रेट ऊँचा है। NCP नें 200 युनिट बिजली बिल माफ करने का वायदा कर वॉट लिया और जीतने के बाद शांत हो गई। पीछले सालों में प्रवासन बढ़ने से कई युवाओं ने नई कार, घोड़े, रेस्टोरेंट, होटल इत्यादि के लिए बैंकों से क़र्ज़े लिए लेकिन अब धंधे बंद हुए इसलिए उस ऋण के भुगतान और व्याज की चिंता उन्हें सता रही है। क़ुदरती आपदा नहीं है लेकिन मानव निर्मित आपदा भी आपदा ही है। उनका क्या क़सूर? ग़रीब लोग कैसे अपना घर चलाएँगे? कुछ राहत तो चाहिए। क्या ग़ैर सरकारी संगठनों की कोई भूमिका बनती है? हमने उन्हें अपना माना है इसलिए अपनेपन के हर कदम से उन्हें अपना बनाए रखना है। ईश्वर आश्रम के श्री रैना (८४) कहते थे कि जब भूगोल स्वीकारा है तब प्रजा का भी दिल से स्वीकार ज़रूरी है। पूनमचंद १० मई २०२५

1 comment:

  1. Dr Rohitshyam Chaturvedi ‘ Shalabh ‘ 68 Dwarikapuri KANGEN WATER OFFICE Opp /FOOTI-KOTHIMay 10, 2025 at 10:35 AM

    सर जी
    नमस्कार
    आपकी बात से सहमत हैं किंतु दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे कम रेवेन्यू देकर सबसे अधिक लाभ लेनेवाले कश्मीरियों की सोच व झुकाव पाकिस्तान की ओर ही है, जो इस्लाम के कारण है । उन्होंने ने न भारत को स्वीकारा और न ही भारतीयों को ।हिन्दुओं से नफ़रत करने का पाठ पढ़ाया गया ब्रेन वाश किया गया अतः वह अपने आपको सुपर व महान समझते हैं दूसरों को निकृष्ट ।
    जो गैर मुस्लिम उनके साथ खड़े हैं,उनके लिए बोलते हैं,लड़ते हैं उसे वे कभी भी उपकार नहीं मानते बल्कि अल्लाह का करम कहते हैं ।वक़्त आने पर उनकी संपत्ति तथा महिलाओं को छीनने में भी संकोच नहीं करेंगे यह बात समझनी होगी आज नहीं तो कल ।
    जो अपने बाप के नहीं हुए वे हमारे आपके कैसे होंगे?
    🕉️सबको सन्मति दे भगवान 🕉️

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