सोनमर्ग कारगिल सफ़र ।
देखनेवालों ने क्या क्या नहीं देखा होगा, मेरा दावा है कि इन हँसी वादियों सा नहीं देखा होगा। आज का हमारा सफ़र था सोनमर्ग और कारगिल वॉर मेमोरियल। लंबा रास्ता था इसलिए हम सुबह ७.३० बजे श्रीनगर से निकले। ५० किलोमीटर दूर जाकर ताज इन रेस्टोरेंट में सुबह का नास्ता किया। यहां बने पराठे ने हमारा दिल जीत लिया। आगे चल हमने छह किलोमीटर लंबी टनल को पार कर सोनमर्ग में प्रवेश किया। पहाड़ों को छेद सुरंग बनाना, उन्हें काटकर सड़कें चौड़ी करना और मिट्टी पत्थर के बने पहाड़ों से भूस्खलन रोकना एक भगीरथ कार्य है। हमारी दायीं ओर बह रही सिंधु नदी नीचे की ओर आ रही थी और हम ऊंचाइयों पर आगे बढ़ रहे थे। शिव जटा हिमालय से बहती गंगाओ में से सिंधु प्रमुख नदी है जो आगे जाकर पाकिस्तान की प्यास बुझाकर कराची के पास अरबी समुद्र में मिलती है। उसके ही नाम से हमारा नाम हिन्दू और हमारे देश का नाम हिंदुस्तान है। गर्मी के दिनों में बर्फ पिघलने से उसका बहाव तेज बन रहा था। सोनमर्ग आते ही सामने खड़ी बर्फीली पहाड़ियों ने हमारा मन मोह लिया। सोनमर्ग (meadow of gold), सोना यानी जल, जल है तो जीवन है। जिस के नाम से यह मुल्क का नाम हिंदुस्तान पड़ा वह सिंधु नदी यहां होकर बहती है। ऊँचे पहाड़, बर्फीले चट्टान, ये वादियाँ, ये फ़िज़ा, लुभाती हमें। अमरनाथ यात्रा का एक रास्ता यहाँ से शुरू होता है। छड़ी यहाँ से चढ़ती है और पहलगांव उतरती है। हमें तेज़ी से कारगिल पहुँच लौटना था इसलिए हम सोनमर्ग को आँखों से पीते हुए आगे बढ़ गए।कुछ किलोमीटर आगे एक छोटी चट्टान जिसे इन्डिया गेट नाम दिया है, पार किया। यहां जम्मू कश्मीर केन्द्र शासित प्रदेश की सीमा समाप्त हुई और लद्दाख की शुरू हुई। आगे केप्टन मोड़ को सँभालकर पार किया। बीआरओ (border road organisation) ने पर्वत काटकर चौड़े रास्ते बनाए है इसलिए सफ़र अच्छा चल रहा था। लेकिन बर्फ हटाने चले मशीनों की वजह से सड़क कहीं कहीं टूटी थी जिन्हें ठीक करने में बीआरओ सक्रिय था। आगे समुद्र से ११६५९ फ़ीट की ऊँचाई पर झोजिला झीरो पॉइंट आया। जिसे पार कर हम झोजिला मेमोरियल होकर गुज़रे। फिर द्रास सेक्टर शुरू हुआ। सड़क की बायीं तरफ़ टाइगर हिल को देखा जहां १९९९ में भारत पाकिस्तान जंग हुई थी। हमारे वीर जवानों ने शहीद होकर सरहद की रक्षा की थी।वहाँ से थोडे ही आगे चलकर हम कारगिल वॉर मेमोरियल द्रास पहुँचे। १५-२० टुरिस्ठ थे।रजिस्ट्रेशन करवाया, एक जवान ने हमारा मार्गदर्शन किया। वहाँ की प्रदर्शनी देखी। जंग का इतिहास पढ़ा। जंग में शहीद होकर जंग जीतनेवाले माँ भारती के वीर सपूतों की वीर भूमि पर नमन कर श्रद्धांजलि अर्पित की और वापस चल दिए। दोपहर का एक सवा बजा था। अगर आगे कारगिल जाते तो रात्रि विश्राम वही करना तय था लेकिन वापसी सरल थी इसलिए हमारी कार श्रीनगर लौट चली।
जाते वक्त हमारे संग चल रही एक नदी हमें अचरज दे रही थी। सिंधु पश्चिम की और बह रही थी और यह पूरब की ओर? कौन है? कार रोक एक पहरेदार को पूछा तो पता चला की यह शिंगो नदी है जो पाकिस्तान की पहाड़ियों से आकर आगे जाकर द्रास में मिलती है। द्रास सुरू में मिलती है और सुरू मरोल पाकिस्तान में सिंधु को जा मिलती है। ऊँचे ऊँचे बर्फीले पहाड़ों से पिघलते बर्फ का पानी उसके बहाव को बढ़ा रहा था। चंचल कन्या सी वह इतनी मनोहर लगी की हमने उसके जल का स्पर्श किया, आँखों पर लगाया और जल का आस्वादन किया। फिर आगे बढ़कर, झोझिला मेमोरियल, झोझिला ज़ीरो पॉइंट, केप्टन मोड़, इन्डिया गेट को पार कर कश्मीर क्षेत्र में प्रवेश किया। केप्टन मोड़ से उपर से नीचे की ओर दिख रही सर्पाकार सड़कें इतनी सुंदर लग रही थीं की एक फ़ोटो फ़्रेम बन जाए। हमारी वापसी तेज़ रही। सुबह जाते वक़्त जो सड़क सूखी थी उस पर अब पानी बह रहा था। सूरज की गर्मी से सड़क के बगल जमी बर्फ पिघलने से सड़क पर पानी का बहाव चल रहा था। सड़क के बगल की बर्फ आज भी एक दो मंजिला इमारत जितनी ऊँची थी, सोचो सर्दियों में कैसी होगी, सड़कों पर कितनी जमी होगी? सब बर्फ की चादर में ढक जाता है। बीआरओ बर्फ काटकर यातायात बनाये रखता हैं यही उनकी कार्यक्षमता का बड़ा प्रमाण है।
जल्द वापस लौटने के चक्कर में हमने लंच को छोड़ा और सोनमर्ग पार किया। यहाँ कुछ पर्यटक थे लेकिन ज्यादा नहीं। सीज़न बैठने का असर यहीं पर भी था। सोनमर्ग पार कर जब हम रेस्टोरेंट ताज इन पर पहुँचे तब दोपहर के साढ़े तीन बज चुके थे। भूख और सफ़र की थकान की वजह से मुँह उतरे हुए थे। मेनू में पनीर और वजवान के व्यंजन थे। हमें पनीर खाना नहीं था और वजवान हमारे काम का नहीं था। इसलिए हमने कश्मीरी वेज पुलाव ऑर्डर किया। लेकिन पुलाव जब आया तो उसमें सब्ज़ी के बदले अमूल का पनीर था। जिस रेस्टोरेंट के पराठे ने हमारा दिल सुबह जीता था उसके पुलाव ने शाम होते होते तोड़ दिया। शायद मरी भूख में हम ईंधन डाल रहे थे। वक्त था इसलिए शकील ने ₹३५० देकर कार धुलवाई और फिर हम चल दिए। रास्ते में एक जगह रुक कर हमने सिंधु नदी के जल का स्पर्श किया, उसे नमन किया। एक जगह गंदरबल लव पॉइंट पर फ़ोटो खींची और श्रीनगर के बाज़ार को पार कर सोनवर सर्किट हाऊस के हमारे कमरे में प्रवेश किया तब शाम के साढ़े सात बज रहे थे। सुबह साढ़े सात से शाम साढ़े सात, बारह घंटे का सिंधु घाटी, सुरू घाटी और द्रास घाटी का यह सफ़र रोचक, रोमांचक और अविस्मरणीय रहा।
पूनमचंद
६ मई २०२५
सरजी नमस्कार
ReplyDeleteयात्रा वृत्तांत पढ़ते समय एक जिज्ञासा बनी रहती है कि अब आगे क्या इसी धुन में पाठक बहता चला जाता है ।आपके यात्रा वृत्तांत की विशेषता यह है कि इसकी भाषा सरल एवं शैली सुबोध सुगम है जो पाठक को अपने साथ लेकर चलती है और इसप्रकार पाठक पढ़कर ही दुर्गम,दुर्लभ यात्रा गाँठ की एक छदाम खर्च किये बिना ही कर लेता है ।
आपका जीवन टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलकर बीता है उसमें अनेक स्थलों पर जाने व विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलने के अवसर तथा उससे जुड़े अनुभवों की जमा पूंजी भी है इन सबको मिलाकर एक ग्रंथ हिन्दी,गुजराती, अंग्रेज़ी में प्रकाशित होसके तो सोने में सुगंध आजाएगी ।
अशोका के लिए यहाँ के Cardiologists ने Angiography की सलाह दी है अतः हम कर्णावती 16 /5 को आएँगे ।वहाँ
U N MEHATA में अच्छी सुविधा है या नहीं हमें कुछ पता नहीं है ।इस विषय में डॉ.बुच साहब को भी बताया है,उनके संपर्क सूत्र भी हैं ।
आप सकुशल घर आजाइए तब मिलेंगे ।
सौ.भाभीजी को प्रणाम ।