श्रीनगर की सैर।
जेलम का किनारा, फ़िज़ा, वादियों, पहाड़, झील, हरियाली, प्राकृतिक सौंदर्य, ख़ूबसूरती, सबकुछ दिल खोलकर क़ुदरत ने श्रीनगर को दिया है। चिनार के पेडो ने शहर की खूबसूरती को चार चांद लगा दिए है। 26 वर्ग किलोमीटर में फैली हरे-भरे पहाड़ों के बीच डल झील श्रीनगर की खूबसूरती का दिल है। शाम के वक्त डल झील की सुंदरता किसी स्वर्ग से कम नही। यहां आप शिकारा बोटिंग कर सकते हैं और साथ ही हाउस बोट में ठहर भी सकते हैं। यहां की मामरा बादाम, अखरोट, बुखारा, मिर्च, लहसुन, प्राण स्वादिष्ट है। शक्तिवर्धक शिलाजीत भी मिल जाता है। यहां के खाने में स्वाद है और पानी में भी। लोग यहां के दरियादिल हैं और मेहमाननवाज़ी के लिए मशहूर है। यहाँ खाना व्यंजनों से भरपूर है। नोन वेज खानेवालों के लिए स्वाद ही स्वाद है। वेज के लिए भी कुछ कम नहीं क्योंकि यहाँ की सब्ज़ी, चावल, पानी और मसालों के साथ कश्मीरी हाथ से मिला स्वाद व्यंजनों को स्वादिष्ट बना देते है।
यहाँ सुन्नी है, शिया है, पठान है, पंडित है, और भी लोग रहते है। सुन्नीओं में भी पीर, खान, हकीम, बेग, शाह, इत्यादि के साथ साथ जो कश्मीरी पंडित मूल के मुसलमान हैं वे अपने नाम के साथ भट, बट, धर, दार, लोन, मंटू, मिंटू, गनी, तांत्रे, मट्टू, पंडित, राजगुरु, राठेर, राजदान, मगरे, याटू,वानी जैसे जातिनाम अपने नाम के साथ जोड़ते हैं। प्रेम लग्न के सिवा यहाँ सुन्नी- शिया में शादी ब्याह का रिश्ता नहीं होता। सुन्नी में भी जाति देखकर रिश्ते होते थे लेकिन बदलते समय ने जाति दिवारें कम की है। फिर भी यहाँ का सामाजिक जीवन रूढ़िवादी है। परसों ड्रायवर महमूद अकबर को पूछा कि एक ही लड़की है शादी कहाँ कराओगे तो उसने बताया जहां लड़की की क़िस्मत होगी शादी हो जाएगी। हम पठान पठानों में ही शादी ब्याह करते है। हम आबादी के एक प्रतिशत हैं फिर भी कश्मीरियों से हमारा शादी ब्याह का रिश्ता नहीं है। यहाँ कईयों का ज़ोर क़िस्मत पर ज्यादा और कर्म पर कम है। १० वी के बाद पढ़ने के लिए उत्सुकता कम है। क़िस्मत में होगा सो होगा मानसिकता से यहाँ जीवन की गति है लेकिन प्रगति सरल नहीं है। आज के कर्म से कल की क़िस्मत बनेगी यह बात अगर उनके पल्ले पड़ जाए तो महा परिवर्तन ले आएगा। लोग मेहनती है, उद्यमी है इसलिए बस अगर नज़र बदली तो नज़ारे बदले समझो।
सभी मुसलमानों का अल्लाह पर भरोसा और उसकी रहमत बंदगी क़ायम है। वैष्णव भक्ति जैसे ही या उससे भी अधिक अल्लाह की बंदगी उनके जीवन का प्रमुख अंग है। उनकी हर बात में, हर काम में, परवरदिगार की याद और बंदगी जुड़ी रहती है। ऐसी अद्भुत धार्मिक शिस्त दूसरे धर्मों में कम मिलेगी।
अमीर गरीब का फासला यहां बडा है। एक तरफ कोठी महल और दूसरी तरफ ₹१०००० महिने गुजारा करनेवाले लोग। कुछ राजनेता रहीश है और हॉटल मालिक अमीर है। डॉ करणसिंह ने बडी जमीन बेच दी फिर भी कुछ एस्टेट्स बडी बडी है। लोग यहां गरीब होंगे लेकिन पिछड़े नहीं है। मानव सूचकांक में वे बीमारू राज्यों से काफ़ी आगे हैं फिर भी दहशत की वजह से दिल में सुकून चैन की कमी है। कल सुबह नास्ता करते यहाँ के स्टेट इमयुनाइजेशन ऑफ़िसर रीटायर्ड कर्नल शहद हुसैन से पब्लिक हेल्थ सेक्टर की बात हुई। लोग स्वास्थ्य योजना का सकारात्मक प्रतिसाद दे रहे है। कॉविड वेक्सिन का भी अच्छी प्रतिक्रिया थी। बाल मृत्यु दर यहाँ १४ से नीचे है जो केराला के बाद सेकंड बेस्ट है। टीकाकरण (immunisation) और संस्थागत प्रसव (institutional delivery) यहाँ ९५% से ज्यादा है। पहाड़ों से प्रसव के एक हफ़्ते पहले नीचे लाकर केन्द्र में रखा जाता है जहाँ खाने रहने की सुविधा है। डिलीवरी के पहले दिन हीपेटाईटीस बी का टीका लगाने में इस कार्यक्रम ने सहूलियत की है। हमारी सोच से विपरीत उनकी समस्या घटता हुआ प्रजनन दर है जो १.४ है और जो उपलब्ध आबादी को प्रतिस्थापित करने में कम पड़ रहा है। टीवी, वॉशिंग मशीन, फ्रिज, एसी, बाईक, मोबाइल और इंटरनेट घर घर पहुँच गया है इसलिए भौतिक श्रम कम हुआ और मोटापा बढ़ने से डायबिटीज़, हायपर टेंशन जैसी बीमारी बढ़ रही है।
शकील अहमद ३० साल का युवा है टैक्सी ड्राइवर है। पिता साठ साल में वृद्ध हो गए इसलिए उसने शिक्षा छोड़ आठ लोगों का पालन करने टैक्सी ड्राइवर बन गया। फिर इग्नु से बीकोम किया और अब एमकेएम कर रहा है। उसे भी दूसरे टैक्सी ड्राइवरों की तरह प्रवासन को नुक़सान होने से ग़ुस्सा और मायूसी है। वह अपने लोन का किस्ता कैसे भरेगा? घर का गुज़ारा कैसे करेगा यह चिंता सता रही है। जिन्होंने अच्छे प्रवासन के चलते बैंक का कर्ज लेकर अपने धंधे के लिए कार, घोड़ा, मालसामान ख़रीदा, लीज़ पर होटल दुकान ली, सब परेशानी में आ गए। शकील कह रहा था हम कश्मीरियों को सिर्फ़ तीन चीज़ें चाहिएः सुकून, रोज़ी-रोटी और प्यार मोहब्बत। लगता था वे लौट रहे है, लेकिन इनसानियत के दुश्मनों ने २६ लोग मारकर उनके घर उजाड़े साथ साथ हज़ारों कश्मीरी परिवारों की रोज़ी रोटी छीन उन्हें मुसीबत में डाल दिया। वे इनसानियत के दुश्मन नर्क से भी नीचे नर्क में जाएँगे।
क्या सरकार उनकी पीड़ा देख कुछ व्याज और भुगतान में राहत दे सकती है?
सुबह १० बजे हमने पर्यटन शुरू किया। पहले डल झील का चक्कर लगाया, कुछ फ़ोटो खींचे और फिर पंडित स्व स्वामी लक्ष्मण जू के ईश्वर आश्रम जाकर कश्मीर शैवीजम के प्रति अपनी श्रद्धा पेश की। स्वामी जी का देहांत १९९१ में हुआ लेकिन उन्होंने साक्षात्कारी संतों के सानिध्य और अपनी साधना से भैरव स्थिति को पाया था और लुप्त हुए कश्मीर शैवीजम को नया जीवन दिया था। उनका एक अंग्रेज़ शिष्य जोन बड़ा अभिभूत था। उसने अपने परिवार साथ रहने एक सुंदर घर बनाया था लेकिन उसका वीजा पूरा हुआ और इलाक़े में टेंशन बढ़ी इसलिए अमेरिका चला गया और उसका मकान बिक गया। यहां हिंदू मुसलमान श्रद्धा रखते हैं और पर्व पर आते है। यहां के कर्मचारी मुस्लिम है। आश्रम के चेयरमैन श्री रैना जी ८४ साल के है उनसे भेंट हुई, चाय पी। कह रहे थे १९९० का दौर बहुत ख़राब था, आया और चला गया। लेकिन यहाँ जो त्रासदी हो रही है उसमें सरहद पार का हिस्सा ज्यादा है। उनका कहना था कि कश्मीरियों में हिंदू मुसलमान विभाजन नहीं है, उन्हें तो बस चाहिए सुरक्षा, अमन और चैन। यहां के लोग वैसे नहीं हैं जैसा दूर बैठे लोग मानते है। सब हिन्दुस्तानी है। बच्चे कम हो रहे है इसलिए चार बीबी कर बस्ती बढ़ाने का झूठ चल रहा है। जहां एक मिलने की मुश्किल हो वहाँ चार कहाँ से आएगी? यहाँ की घटना का प्रभाव दूसरे राज्यों के मुसलमानों पर भी नहीं पड़ना चाहिए। कुछ आतंकवादी पूरी क़ौम को कैसे बदनामी दे सकता है? धर्म से पहले सब इन्सान है इसलिए इनसानियत पर काम करना चाहिए। अवाम की एकता ही बड़ा समाधान है।
आश्रम मुलाक़ात के बाद हम शालीमार बाग गये। बादशाह जहाँगीर ने 1633 मे इस बाग़ को बनाकर नूरजहां को तोहफ़े में दिया था। लक्ष्मी ने कश्मीरी पोशाक में ₹१०० में पाँच फ़ोटो (हार्ड और सॉफ्ट कॉपी) खिंचवाई। बाग़ में एक छोटा मुस्लिम रिवार मिला जो अपने पाँच साल के बेटे का जन्मदिन मनाने आया था। उन्होंने जन्मदिन का केक खिलाया जो बेहद स्वादिष्ट था। कहीं दूर जाने के बदले उन्होंने अपने घर के पास ही इस सार्वजनिक जगह को पसंद किया। पति पत्नी दोनों एकाउंटेंट की सरकारी नौकरी कर रहे है। एक बेटी जो बेटे से सोलह साल बड़ी है उसने बीटेक सिविल इंजीनियरिंग कर रखी है और राज्य सेवा की स्पर्धात्मक तैयारी में जुटी है। सबका कहना था जो हुआ ग़लत हुआ, इनसानियत के खिलाफ हुआ, क़ुरान की शिक्षा के ख़िलाफ़ हुआ। क़ुरान सिखाता है दूसरे मज़हब का आदर करना, फिर मज़हब पूछकर मारने की गुंजाइश कहाँ? वे मेहमान थे, हमें रोज़गार के अवसर देकर हमारे लोगों की भलाई करने आए थे, उनको मारकर उनके परिवार को तबाह कर किसका भला हुआ? प्रवासन का भारी नुक़सान हुआ और हज़ारों के धंधे रोज़गार नष्ट हुए। नर्क के सिवा और क्या मिलेगा मारनेवालों को?
शालीमार के बाद हम निशात बाग गए। बादशाह जहांगीर साले (नूरजहां के भाई) और बाद में बादशाह शाहजहाँ के ससुर बनें आसफ़ खाँ ने 1634 में बनायें निशात बाग़ (garden of gladness) को भी मन भर देखा। निशात बाग १२ राशियों से जोड़ बारह स्टेप्स में बनाया गया था। पानी के बहने की मधुर ध्वनि और रंगबिरंगे फूलों से भरा हरियाणा बाग, एक तरफ़ डल झील और दूसरी तरफ़ पहाड़िया की वजह से यह बाग ज्यादा ख़ूबसूरत है।
बाग़ों के सफ़र के बाद हमने आदिगुरू शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में स्थापित किए शिव मंदिर और उनकी तपस्थली का दर्शन किया। इस उम्र में फूट फूट नाप की २७२ सीढ़ियाँ चढ़ना और उतरना कठिन लगा फिर भी कर लिया। मंदिर की अष्टकोणीय प्लीन्थ उपरी भाग से पहले की प्राचीन है। उपरी भाग बाद में सुधारा गया हो। गर्भगृह छोटा है और शिवलिंग बहुत बड़ा जो मध्य में स्थापित है। लेकिन जैसे दूसरे शिव मंदिरों में शिवलिंग के पीछे दिवार पर पार्वती-शक्ति की मूर्ति होती है वैसा यहाँ नहीं है। हो सकता है यह भी मूल इमारत में बाद में जुड़ा हो। यह स्थान की ऊँचाई पर खड़े हमने पूरे श्रीनगर और उसकी बेनमून सुंदरता को मन भर पी लिया।शंकराचार्य तपस्थली बगल में ही नीचे थी जो एक छोटी गुफा है। भीतर गहरी शांति और आदिगुरू शंकराचार्य की धातु प्रतिमा है।
शाम हो रही थी, हम प्रसिद्ध लाल चौक गये, फ़ोटो ज़रूर खिंचवाई। यहाँ के बाज़ार में दिल्ली का ही माल था, कुछ विंडो शॉपिंग करते करते कुछ छोटी चीज़ें ख़रीद ली।
श्रीनगर में आज सब सामान्य था। स्थानिक लोग और टुरिस्ट ऐसे घूम रहे थे जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दोनों बाग में सीआरपीएफ के जवान मौजूद थे। बाज़ार में पुलिस हाज़िरी सामान्य लगी।ईश्वर आश्रम और शंकराचार्य मंदिर पर सीआरपीएफ उपस्थिति बराबर की थी। ईश्वर आश्रम में सीआरपीएफ के एक डॉक्टर साहब भी रहते है। एक स्थानीय ने कहा, डॉक्टर साहब सुबह शाम वॉक पर अकेले निकलते है लेकिन सुरक्षा में नौ जवान तैनात है। हालाकि ईश्वर आश्रम धार्मिक स्थान है और लोग हर रविवार और पर्व निमित्त यहाँ आते है इसलिए सुरक्षा पोस्ट बना है। लेकिन आश्रम में नॉनवेज खाना लाना मना है इसलिए तैनात नौ जवानों को अपनी पसंद का खाना खाने बाहर निकलना पड़ता है।
स्वर्ग जैसे लुभावने श्रीनगर की यह थी एक छोटी सी झलक।
पूनमचंद
४ मई २०२५
अत्यंत सुंदर वर्णन। सच में यह धरती पर फिरदौस है । पिछले साल हमदोनों भी वहाँ गये थे । वहाँ की सुंदरता ने मंत्रमुग्ध कर दिया ।
ReplyDelete- एम पी मिश्र
It is a pleasure to read your travelogue and the insight you share. I am glad you continued your program to Srinagar despite so much of pressure on you to cancel it. I hope others get inspired and continue patronising Kashmir as a holiday destination
ReplyDeleteAn excellent description of the Srinagar visit by the blogger Sri Parmar. In a very concise way he has highlighted the various important sites there as well as brought out the human interest angle. The local people angle was very interesting.
ReplyDeleteThe description seems live.Very helpful for those planning to visit Srinagar.
ReplyDeleteVery well written and beautifully explained the true picture of Kashmir. I visited recently from 5-04-2025 to 12-04-2025 during Tulip Fest. It was a wonderful experience with the same driver Mr. Shakeel in Srinagar. He is so dedicated towards his duties. Same experience with all other localities. We spent memorable time but after few days this Pahalgam incident. So horrible. We were eighteen women in that group. All were so happy. We wish the good time again in Kashmir.
ReplyDeleteAnjalii, principal
Directorate School Education, Haryana