दर्शन दर्शन दर्शन।
सारा हिन्दुस्तान मंदिर जाता है।
किसलिए?
मंदिर के गर्भगृह में रहे भगवान के दर्शन करने।
कीर्तन करता है। किसलिए?
अपने इष्ट के दर्शन के लिए।
क्यूँ करता है? कोई मुक्ति के लिए, कोई भक्ति के लिए कोई संसार से कुछ पाने के लिए।
कौन है भगवान? कौन है इष्ट? पता नहीं। परंपरा से मा-बाप, भाई बंधु ने बताया वह। बस दर्शन करना है।
देश में सांख्य, योग, न्याय, मिंमासक, बौद्ध, जैन, आजविक, नाथ, शैव, शाक्त, वैष्णव, आगम-निगम, वग़ैरह ६२-६३ प्रकार के दर्शन रहे।
दर्शन?
क्या दिखाना चाहते है?
भगवान का, सर्जनहार का दर्शन।
लेकिन जब पता लगाते लगाते समझ गये कि सब कुछ एक ही सत्ता के विविध रूप है तब खुद को भी देखना शुरू कर दिया और आत्म दर्शन शुरू हो गया।
जाग्रत में चक्षु देखते है जाग्रत मन से। स्वप्न में चर्म चक्षु नहीं होते तब मन अपनी आँखें बनाकर अपनी बनाई सृष्टि को देख भी लेता है और अनुभूत कर लेता है। पर सुषुप्ति की गहरी नींद की खबर कौन देता है? उसका पता लगाते लगाते सुषुप्ति के दृष्टा को भी समझ लिया।
लेकिन यह तीनों अवस्था के दृष्टा की दृष्टि कौन है जो तीनों को देखने की शक्ति दे रही है? जब उस पर ध्यान गया और होनेपन का दरिया हाथ लग गया। बुद्धि के पार भी वह ही वह। सर्जन में मौजूद और विसर्जन के बाद भी। अनुत्तर हो गया।
बुलबुला बन देखा तब दरिया का पता नहीं चला। लेकिन जैसे ही दरिया बन देखा तो अनंत बुलबुले मेरा ही रूप है यह साक्षात्कार हुआ।
क्या हुआ?
दरिया बदल गया?
बुलबुला बदल गया?
कुछ भी तो नहीं बदला?
जो जैसे था वैसा ही है। जैसे चल रहा था वैसा ही चल रहा है। हर रोज़ सुबह होती है, शाम ढलती है। फिर नई सुबह, घट रहा है। कट रहा है।
फिर बदला क्या?
बस बुलबुले की दृष्टि बदल गई। कूपमंडूक बाहर आ गया और दरिया की विशालता में मग्न हो गया। दर्शन बदल गया। प्रज्ञाचक्षु लग गये। ज्ञानचक्षु आ गये। ज्ञान की अंजन शलाका से गुरु ने ज्ञान का सूरमा लगा दिया।
दर्शन बदल गया।
दर्शन हो गया।
अपने ही गर्भगृह हृदय में दर्शन करो।
दर्शन करो। अपना ही दर्शन करो। आप ही अपनी वेशभूषा बदल कर खो गये हो, सब रूप हो गये हो। कोई बुलबुला छोटा हो कोई बड़ा लेकिन पानी और दरिया सब में एक।
जागो और अपने ही दर्पण में अपना दीदार कर लो। आप भीतर पहचान लोगे तो बाहर भी आप ही नज़र आओगे। फिर अंदर बाहर भेद कुछ भी नहीं।
खेल करना हो तब द्वैत हो जाना और अखेल में अद्वैत। पूर्ण स्वातंत्र्य।
दर्शन, दर्शन, दर्शन।
दर्शन करो।
शक्ति दर्शन।
शिव दर्शन।
सामरस्य दर्शन।
दर्शन दर्शन दर्शन।
पूनमचंद
९ अगस्त 2022
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