Saturday, September 30, 2023

नींद और मृत्यु।

नींद और मृत्यु। 


कल का दिन थकानेवाला था। उम्मीदवारों को प्रश्न पूछते पूछते हम ही थक गये। घर लौटे तब सर में भारी दर्द था। थोड़ा सा ध्यान किया, चित्त को स्थिर किया जिससे राहत हुई लेकिन खाने में भाकरी शाक के स्वाद पर ध्यान न रहा। रात के ९.३० होते ही हम सोने चले गए। नींद आ नहीं रही थी। थोड़े से पैर दायें-बायें करने की हल्की कसरत की और शवासन लगाया। फिर कब सो गये पता नहीं चला। 


सुबह जब ३.३० बजे नींद खुली तब लगा कि किसी गहरे प्रशांत सागर से अभी बस बाहर आ रहे है। शवासन से जागने तक बीच क्या हुआ पता ही नहीं। न देश था, न काल था। जागा तब पता चला की मैं तो था। मैं नहीं होता तब यह देशातीत, कालातीत, शांत अवस्था का अनुभव किसे होता? लेकिन मन, बुद्धि, अहंकार सब ग़ायब थे। उसको जैसे उठकर जगाना पड़ा, भैया जागो, भोर हुई, बाहर आपका संसार पुकार रहा है। 


मृत्यु भी कुछ ऐसी ही होगी। मुझे मृत्यु का अनुभव नहीं। क्या इसलिए कि मैं अमर हूँ? 


एक गहरी नींद होगी जिससे फिर उस शरीर से नहीं उठना है। शरीर तो पंचमहाभूत के पंच तत्वों में विसर्जित हो जाएगा लेकिन मैं कहाँ जाऊँगा? कहाँ रहूँगा? क्या जिसे मैं, मैं कहता हूँ वह मेरे मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार से बना सूक्ष्म शरीर कहीं रहेगा? क्या वह भी जैसे भौतिक शरीर का पंच भूतों में विलय हुआ, समष्टि ईश्वर (चेतना) के सूक्ष्म शरीर में विसर्जित हो जाएँगे? 


यह पृथ्वी मृत्युलोक है, और जीवलोक भी। यहाँ हर पल मौत होती है और नया जीवन सृजन होता है। इसलिए, जब कोई संयोग होगा तब जैसे मैं आज नींद से जागा, मृत्यु के बाद एक नये शरीर को धारण कर जाग्रत होने की संभावना बनी रहती है। ऊर्जा का नाश नहीं होता परिवर्तन होता है। चित्त की उत्क्रांती जारी है। आरोह क्रम पूरा होते ही सूक्ष्म का कारण में विलय होगा। तब यह लीला का अंत होगा और मैं, मैं (पूर्णोहं) बन ठहर जाऊँगा। 


न ठहरूँ, तब भी मैं, मैं (पूर्णोहं) हूँ। 

अजर, अमर, सनातन। 😊


पूनमचंद 

३० सितंबर २०२३

1 comment:

  1. मृत्यु की इतनी सुन्दर और सरल व्याख्या ! शीतल पवन के स्पर्श की अनुभूति हुई , " दक्खिन पवन बहु धीरे " वाली अनुभूति ! प्रणम्य आलेख !

    ReplyDelete

Powered by Blogger.