Friday, April 1, 2022

Tutorial, Tin Darwaja, Ahmedabad

 ट्यूटोरियल। 


अहमदाबाद हेरिटेज सीटी का तीन दरवाज़ा। दुकानों ओर ख़रीदारों की भीड़ से भरा। उसमें है स्थित एक ट्यूटोरियल मार्केट। ५*५ वर्ग फूट की २०० दुकानें, २५०*३५ वर्ग फूट में इतना सामान, इन्सान कैसे समाहित होगा? यहाँ बच्चों और महिलाओं के कपड़े, पर्स, कंगन, जूते, वग़ैरह फ़िक्स रेट पर मिल जाते है। फ़िक्स रेट का स्टिकर नहीं होता, बस आपका चेहरा देखकर दुकानदार ने जो भाव कह दिया वह हो गया फ़िक्स रेट। ख़रीदारी में देर हो जाये तो घुमती चाय-समोसे का आनंद भी ले सकते है। 


मुझे इसी बाज़ार में बच्चों के जुते ख़रीदते दुकान नं २६ पर एडहेसीव के एक व्यापारी से मुलाक़ात हो गई। वह दुकान के बाहर लगे एक छोटे स्टूल पर बैठे कुछ जाप कर रहे थे। बातों का जवाब देते थे, पर उनका ध्यान अपने जाप पर था। मुझसे रहा नहीं गया और बात छेड़ दी। रूह और जिस्म अलग होने में और अल्लाह-परमात्मा निराकार होने में हमारी सहमति हो गई। फिर मैंने प्रश्न पूछे। क्या अल्लाह सब जगह नहीं होता? उसने जैसे ही हाँ कहा, मैंने पूछ लिया, फिर वह हममें भी मौजूद होगा? उसने फिर हामी भरी तो फिर पूछा कि क्या उसे अपने अंदर खोजना सरल या बाहर? उसने जवाब दिया, स्वाभाविक ही अंदर। अंदर तो एक रूह ही है तो उससे ख़ुदा कैसे अलग? वह चूप रहा। लेकिन दुकानदार नरमावाला चतुर था। जुते बेचने छोड़ वह भी सत्संग में शामिल हो गया। कहा वह सबका मालिक है। यह सब जो दिख रहा है उसका मालिक अल्लाह है जो आसमान में रहता है। हम इन्सान, पशु, पक्षी सब उसका हुक्म है। उसके हुक्म से वह प्रकट होते हैं और हुक्म ख़त्म होते मिट जाते है।जब इन्सान का मालिक ख़ुदा है फिर इन्सान कैसे मालिक हो सकता है? मेरे प्रश्न और उनके जवाब कुछ इन शब्दों में समा गये। 


न आकार है न दीदार, पर है परवरदिगार;

आसमान पर ठहरा, सब का मालिक एक। 


हर रूह हुक्म उसका, चलाये या करे ख़त्म;

नेकी ईमान की राह चल, क़यामत से डर। 


इस दुनिया में जो दिखता, मालिक एक सब उसीका; 

इन्सान का वह मालिक, फिर इन्सान कैसे मालिक? 


रहनुमा दरगुजर फ़िक्र में तेरी, भेजे फ़रिश्ते हुक्म; 

जो बताया राह उसी चल, नेकी कर दरिया में डाल। 


कहाँ मन्सूर ने अनलहक, शूली चढ़ा पर झुका नहीं;

शरीयत तरीकत मारफत और हक़ीक़त चला गया।  


एक नूर चारों ओर, कौन देश, कैसा आवन जावन। 

ख़ुद में ख़ुदा मिले नहीं, फिर कैसी बंदगी क्या दुआ?


पूनमचंद 

९ मार्च २०२२

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