Tuesday, February 21, 2023

तीन कदम।

 तीन कदम। 


जीव क्या है? शिव कौन? क्या करना है? किसलिए करना है? यही तो सब प्रश्न साधक के मन विचार पर हावी बने रहते है। 


दो क्षेत्र को ठीक से समझ लेना है। आत्म क्षेत्र और अनात्म क्षेत्र। आत्म क्षेत्र यानि स्व (self), चैतन्य (consciousness), अस्तित्व (existence)। अनात्म क्षेत्र यानि परिवर्तनशील, नाशवंत, शरीर, प्राण, मन, जगत इत्यादि। 


पहला कदम आत्मा और अनात्म का विवेक करना है। दोनों को विभाजित कर समझ लेना है। 


फिर दूसरे कदम पर दोनों के स्वरूप को समझना है। आत्मा सत्य (real) है और अनात्म मिथ्या (unreal)। एक अमृत दूसरा मृत। 


तीसरा कदम है ‘मैं आत्मा हूँ’ (the real is me) और इसी दृष्टि से सबकुछ देखना है और स्वस्थ (शांत) होना है। 


अगर मिथ्या (अनात्म) को सत्य मान लिया तब दुःख भी सत्य हो जाएगा। जीव औपाधिक है, कर्ता भोक्ता भाव है इसलिए उसे सब प्रश्न है। आत्मा न तो कर्ता है न भोक्ता। इसलिए जो आत्म स्वरूप में स्वस्थ हो गया, वह शांत हो गया। उसे फिर बाहरी उथल-पुथल या हलचल अशांत नहीं करेगी। क्योंकि जिसने आत्म स्वरूप में रहना सीख लिया उसने अपने सच्चे स्वरूप को जान लिया, स्वस्थ हुआ और सुखरुप हो गया। 


जब तक हम जीव बने रहेंगे तब तक शरीर, मन, बुद्धि, इत्यादि उपाधियों में बंधे रहेंगे। साधना इस उपाधियों को छोड़ने की है। त्याग इसी उपाधियों का करना है। 


अचानक तो नहीं हो पायेगा इसलिए शिक्षा दी जाती है कि पहले निषिद्ध कर्म (व्यसन, चोरी, हिंसा, इत्यादि) का त्याग करो। फिर बताया जाता है कि सकाम कर्म का त्याग करो। कर्म करो लेकिन फल की अपेक्षा न रखो। full time volunteer. फिर आगे आएगा कर्म सन्यास। सब कर्म त्याग कर श्रवण मनन निदिध्यासन करो। आत्म स्वरूप की पहचान कर लो। एक बार आत्म स्वरूप की पहचान हो गई फिर कर्म करें या न करें उसका कोई असर नहीं रहता। क्योंकि जो स्व है वह उससे अलग हो गया (disassociate). कर्ता भाव चला गया। आत्मा अकर्ता है। कर्ताभाव, कर्म करने का या छोड़ने का, दोनों ही स्थिति अहंकार है। 


इसलिए ठीक से समझ लीजिए। सावधान हो जाइए। आत्म की पहचान कर लीजिए। एक बार आत्मा को पहचान लिया, स्वस्थ हो गया फिर उस मुक्त की मुक्ति का क्या कहना। जीवन मुक्त है, विदेह मुक्त रहेगा।  


एक ही है। परम सत्य। बाक़ी सब मिथ्या। माया। माया को छोड़िए। महादेव को अपनायें।😊


फिर मत कहना, दुविधा में दोनों गये, माया मिलीं न राम। 😜


🕉️ नमः शिवाय। 


पूनमचंद 

२१ फ़रवरी २०२३

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