Thursday, March 14, 2024

प्रयत्न शैथिल्य और बुद्ध की कहानी।

 प्रयत्न शैथिल्य और बुद्ध की कहानी। 


गौतम बुद्ध एक दिन अपने शिष्य आनंद के साथ किसी जंगल से गुजर रहे थे। रास्ते में उन्हें प्यास लगी तो उन्होंने आनंद से कहा, ‘पास में ही एक झरना बहता दिख रहा है। वहां जाकर पीने का पानी ले आओ।’ 

कुछ ही देर में आनंद झरने के पास पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि एक बैलगाड़ी तालाब में से गुजरी तो पहियों की वजह से पानी बहुत गंदा हो गया। नीचे की मिट्टी ऊपर दिखने लगी है। आनंद गंदा पानी देखकर लौट आए। उन्होंने बुद्ध से कहा, 'तथागत, वहां का पानी बहुत ज्यादा गंदा है, पीने योग्य नहीं है। 

‘बुद्ध बोले, 'तुम एक काम करो, कुछ देर पानी के पास जाकर बैठ जाओ। फिर देखना।'

बुद्ध की बात मानकर आनंद तालाब के पास फिर से पहुंच गए और वहीं किनारे पर बैठ गए। थोड़े समय के बाद ही पानी की हलचल शांत हो गई और धीरे-धीरे मिट्टी नीचे बैठ गई, ऊपर बहता पानी एकदम साफ हो गया। आनंद साफ पानी देखकर समझ गए कि बुद्ध क्या समझाना चाहते थे। वे पानी लेकर बुद्ध के पास लौट आए।

बुद्ध ने कहा, 'जिस तरह हलचल से पानी गंदा हो जाता है और कुछ देर बाद बिना प्रयास जब गंदगी नीचे बैठ जाती है तो पानी साफ होता है वैसे ही मन अपने आप शांत हो जाता है। उसके लिए किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं। बस धैर्य रखना है।’

मन के शांत होने से जो प्रकट है (होगा), वही तो आत्म प्रकाश है। स्वयं ज्योति। नित्योदित। उस स्वयं के साक्षात्कार के लिए प्रयत्न कैसा? 

प्रयत्न शैथिल्य ही उपाय है। 
श्रद्धा और सबूरी। 
प्रेम और धैर्य। 

जैसे दर्पण में हम अपना रूप देखकर प्रसन्न चित्त हो उठते हैं, वैसे ही यह विश्व दर्पण हमारा ही रूप है। बस जिस दिन वह दिख गया उसकी सुंदरता में अहं विलीन हो जाएगा। अहं का जाना और रहस्य से पर्दा उठना एकसाथ घटित होना है। फिर चाहे उस रूप को शिवशक्ति, कामेश्वरकामेश्वरी, कृष्णराधा अथवा सूफ़ी कुमार रूप में देख ले, स्वात्मा का ही विमर्श है। यह जगत सौदर्य लहरी है। परमाद्वैत है।

पूनमचंद 
१४ मार्च २०२४

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