Friday, May 2, 2025

चलो बुलावा आया है! जय माता दी।

चलो बुलावा आया है। जय माता दी। १९८६ में जब हम मसूरी से आर्मी अटेचमेन्ट के लिए जम्मू अखनूर क्षेत्र में आए थे तब माता वैष्णोदेवी के और बाबा भैरव के दर्शन का लाभ हुआ था। जवानी थी इसलिए एक ही दिन में १६*२, ३२ किलोमीटर का सफ़र नौ घंटे में पूरा कर दर्शन, प्रसाद का लाभ लिया था। तब गुफा स्थान में रखी तीन पिंडी में महाकाली, महालक्ष्मी (वैष्णवी) और महासरस्वती के दर्शन करने बहते पानी के पास से पेट के बल अंदर जाकर झुककर दर्शन कर घुटने के बल बाहर आए थे। प्रसाद में २, ३, ५ पैसे के सिक्के, प्रसाद और एक चुनरी भेंट मिली थी। भैंरो के धूएँ से भभूत मिली थी। सब लाकर माता जी को दिया था जो उन्होंने जीवनभर अपने पूजा स्थान में रखा था। आज १ मई २०२५, फिर मसूरी से माता रानी के दर्शन का योग बना। हम सब बेचमेट अपने भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश के ४० साल पूरे करने की ख़ुशी में (२८-३० अप्रैल) इकट्ठा हुए थे और वापसी में मैंने माता रानी की ओर हमारा पथ मुक़र्रर कर रखा था। हमारा वंदे भारत ट्रेन में अंबाला से कटरा बुकिंग था। मसूरी से अंबाला कार से आए और केन्ट के २०० साल पुराने अंग्रेज़ों के ज़माने के सर्किट हाऊस में ठहरने का मौक़ा मिला। सिर्फ़ चार कमरे, एक विशाल मीटिंग कम भोजन कक्ष और बड़ा सा बाग़। यहाँ अंग्रेज़ महानुभाव ठहरते थे और आज़ादी के बाद राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री जैसे महानुभावों ठहरते है। इसका बेड रूम कमसे कम ३०*२५ फ़ीट का, बाथरूम १८*१२, ड्रेसिंग और रूम का डायनींग और फेमिली रूम भी बड़े बड़े। कमरे में जहाँ हाथ पहुँचे कॉल बेल लगे है जिससे की महानुभाव को ओर्डरली को बुलाने उठने का कष्ट न करना पड़े। छत की उंचाई क़रीब ३२ फ़ीट, जहाँ से २० फूट लंबी पाइप पर पंखे लटकाये गये हैं। दिवारें इतनी मोटी की गर्मी में एसी की ज़रूरत न पड़े। ट्रेन स्टेशन यहाँ से दस मिनट दूर था और वंदे भारत ट्रेन वक्त पर थी इसलिए सुबह ८ बजे स्टेशन से हम कटरा के लिए बैठ गये। मोदी सरकार ने वंदे भारत ट्रेन सीरीज़ शुरू कर रेल यात्रा का रूख ही बदल दिया है। प्रभावी एसी ट्रेन, आकर्षक डिब्बे, साफ़ सुथरे टॉयलेट, स्वच्छ स्वास्थ्यप्रद भोजन, दरवाज़ों की ऑटो नियंत्रण; विदेश कहाँ जाना? अपना देश इतना विशाल और वैविध्यपूर्ण है कि पूरी ज़िंदगी सफ़र करे फिर भी यात्रा ख़त्म नहीं हो सकती। आज एक दूसरी ट्रेन के लेट चलते हमारी ट्रेन भी एक घंटा लेट हो गई। दोपहर सवा तीन बजे जैसे ही उतरे हमारे कोच के सामने एक इ-रिक्षा खड़ी थी। ₹५० सवारी में उसने हमें सामान समेत दो मिनट में एक्ज़िट पार कराया। बाहर कार खड़ी थी, जो हमें सीधे ही हेलिपेड ले चली। हमने अपना उपर ले जानेवाला सामान सॉल्डर बैग में अलग कर रखा था इसलिए दूसरी सामान बैग ड्राइवर को देकर हमने अपने झोले उठाए और प्रतीक्षा कक्ष में जा बैठे। तुरंत एजन्सी का एक कर्मी आया और कुल ₹८८४० की दो राउंड ट्रिप टिकटें काटी और हमें सीधे हेलिकॉप्टर में बैठा दिया। आगे पायलट के साथ एक पैसेंजर और पीछे हम दो और एक, और हमारे पीछे सामान के साथ एक बॉय, कुल छह लोग। हम अभी मिनट आधी मिनट में बैठे की हेलिकॉप्टर फूररर उड़ा और कुछ साँस ली और छोड़ी तब तक तीन-चार मिनट में उपर साझीछत हेलीपेट पर पंछी उतर गये। आगे तीन किलोमीटर सरलता से चलकर और साडे चार बजे हम माता रानी के दरबार में पहुँच गये। अंबाला से सुबह ८ बजे चले और आठ घंटे में एक यात्री के ५० डॉलर खर्च में हम यहाँ पहुँच गये। क्या इतनी सरल और सस्ती यात्रा विश्व के किसी दूसरे देश में हो सकती है? पहलगाम त्रासदी घटना की वजह से आज कल यात्री कम हुए वर्ना सीज़न में दैनिक पचास हज़ार तक की भीड़ हो जाती है। प्रशासन ने आवागमन ने रास्ते सुगम किये है। हमारे लिए भवन का १११ नंबर रूम खुला (किराया ₹२७००), हम फ़्रेश हुए और देवस्थान कर्मी की मदद से वीआईपी पथ से मातारानी के दर्शन का लाभ लिया। यहाँ मंदिर स्थानक में माताजी तीन पिंडी रूप में स्थापित है। हमारे दायें से महाकाली, बीच में महालक्ष्मी माँ वैष्णोदेवी और तीसरी पिंडी महासरस्वती। सामने पुजारी की बैठक और उसके कंधे के पीछे की जगह में धातु का एक छोटा शिवलिंग। हमने दर्शन किये, तिलक करवाया, माथा टेका, प्रसाद और चुंदरी चढ़ाई, मेवा सिक्के का प्रसाद पाया, बगल से बहते पानी का आचमन किया और बाहर आ गए। फिर हमने जनता जहाँ से आ रही थी उस मार्ग में जाकर भोजनालय, विश्राम, सोवेनियर शॉप इत्यादि व्यवस्था कि जायज़ा लिया। लोग भोजनालय में खा रहे थे और इधर उधर विश्राम स्थल पर आराम कर रहे थे। यहाँ बाहर सोनेवालो के लिए कंबल बाँटे जाते है। कुदरत का नजारा देखा तो चारों और पहाड़ियों के बीच बना यह धार्मिक स्थल बहुत ही रमणीय है। भैंरो पहाड़ी, शेषनाग पर्वत और मातारानी की बैठक, एक शुभ चंद्राकार में तीनों स्थित हैं और सामने खुला हुआ घाटी प्रदेश। हरियाली से भरी पहाड़िया, मंद मंद पवन और हल्के फूलके बादलों में छिपता और निकलता सूरज और मंत्रोच्चार से गुंजायमान वातावरण मन को प्रसन्नता से भर देता है। सरकार और यहाँ के सीइओ IAS अधिकारी अंशुल गर्ग और उनकी टीम ने यहाँ अद्भुत काम किया है। यात्रियों के लिए रास्ते चौड़े करवाए, उस पर शेड बनवाए, निवास स्थान बनवाए, लंगर खुलवाए, नियत दूरी पर शौचालय बनवाए, स्नान घर बनाए, हेलिकॉप्टर सेवा शुरू की, बैटरी कार सेवा शुरू की, भैंरो की पहाड़ी जाने आने उड़न खटोला लगवाया, एक और उड़न खटोला लग रहा है, टट्टु और पालकी सेवा भी उपलब्ध है, सब और सफ़ाई और स्वच्छता नजर आती है; मंदिर परिसर से लेकर कटरा तक सबकुछ बदलकर यहाँ यात्रियों के लिए सुविधाजनक कर दिया गया है। कर्मचारी भी कर्मयोगी बने है। हम दोनों ने आमजन के साथ बैठ छोले भटूरे (₹५५) और कॉफ़ी कोपेचीनो (₹३०) का आनंद लिया। हाँ, यहाँ मच्छर बहुत है। पानी और गटर की वजह से उनकी उड़ान संख्या बढ़ी है। आमजन बाहर ही विश्राम करते है इसलिए मच्छरों की उड़ान कम करने प्रशासन को कदम उठाने चाहिए। योगसंयोग से आज गुजरात महाराष्ट्र स्थापना दिन, अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिन और मेरी अर्द्धांगिनी लक्ष्मी का जन्म दिन था। हमने महालक्ष्मी मंदिर परिसर की कॉफ़ी शॉप से एक छोटी केक ख़रीदी और भवन के कमरे में आकर हमारी सरल और सादगी की देवी लक्ष्मी का जन्मदिन मातारानी महालक्ष्मी (वैष्णोदेवी) परिसर में ही मनाया। भवन की पेन्ट्री में डिनर का प्रबंध था लेकिन भूख नहीं थी इसलिए नौ बजते ही हम निद्रादेवी को प्यारे हुए। रात क़रीब दो बजे आँख खुली तो बादल गरजने और वर्षा होने की आवाज़ आ रही थी। मैंने कमरा खोला और मौसम के बदलते रूख को देखा और फिर लेट गया। ३.३० होते ही हर दिन के वक्त पर ज़मीं दिमाग़ी घड़ी ने उठाया और हम अपने सुबह के कार्य में प्रवृत्त हुए। लक्ष्मी उठते ही हम तैयार हुए और उड़न खटोले की ओर चलें। लेकिन रात में हुई बारिश और तेज आँधी की वजह से शायद उसकी बैटरी चार्मेंज न हुई हो या कोई फाल्ट आया हो, आज समय से नहीं चली कब चलेगी उसका भी जवाब नहीं थी सोचा इंतज़ार करने से अपने पैर भले। हम पैदल चल दिए। शुरू में तकलीफ़ हुई लेकिन जैसे जैसे चलते गए राह कटती गई और तीन किलोमीटर चलकर सबा आठ बजे भैरों देव के दर्शन कर लिए। तिलक लगा, माथा टेका, काला धागा बँधवाया, बगल के धूने से भभूत लगाई और दूसरी तरफ़ के रास्ते से साँझीछत हेलिपेड की ओर चल दिए। साडे तीन किलोमीटर चले तब हेलिपेड आया। पहुँचते ही हिमालयन कंपनी का हेलिकॉप्टर आया, हम बैठे और फूर्र कर नीचे आ गए। एक टेक्सी बुलवाई थी, उसमें सामान लगाया, बैठे और श्रीनगर की ओर रवाना हो गए। कितना सरल, सुगम, आह्लादित करनेवाला था यह सफ़र! मातारानी का बुलावा हो और कष्ट सब मिट जाए यही उनका प्रसाद है। प्रेम से बोलो जय माता दी। पूनमचंद वैष्णोदेवी २ मई २०२५
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