Monday, January 2, 2023

Heart (ह्रदय)

 ह्रदय 


ह्रदय नाम सुनते ही ह्रदय वीणा के तार झनझनाते है। एक अजीब सी बेचैनी, आह निकल जाती है। विश्वमय यह संसार लीला में एक माँ काँ ह्रदय और दूसरा प्रेयसी का ह्रदय सिरमौर माना गया है। माँ प्रेम का प्रतीक है चाहे माँ इन्सानों की  माँ हो या पशु पक्षी की। यशोदा मैया का नंदलाला के प्रति प्यार हो या गोपियों का कान्हा से। 


प्रेम गुप्त प्रवाह है। कैसे देख पाओगे? प्रेम दिखता नहीं अनुभूत होता है। प्रेम ह्रदय का प्राकट्य है। फिर भी माँ जब सो जाती है या प्रेयसी-प्रियतम सो जाते है तब प्रेम की यह सात्विक आसक्ति भी शांत हो जाती है। 


भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते है सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च। वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।(१५.१५) मैं समस्त प्राणियों के ह्रदय में स्थित हूँ….. किसलिए? चैतन्य सर्वत्र है लेकिन उसकी अनुभूति के लिए एक साधन चाहिए, गुण प्राकट्य के लिए एक माध्यम चाहिए, वही ह्रदय है। यह कोई अपने शरीर में बायीं ओर रहे स्थूल पंप की बात नहीं है पर चेतना का प्रवाह जिस केन्द्र से प्रवाहित हो रहा है वह चैतन्य केन्द्र की बात है, जो कि सब वृत्तियों का प्रकाशक है। मुर्दे में ह्रदय कहाँ? 


चैतन्य का प्राकट्य है ह्रदय। चैतन्य (प्रकाश) सार है पर उसकी अभिव्यक्ति विमर्श है ह्रदय। अस्तित्व का केन्द्र है ह्रदय। हम सबकी जीवंत अभिव्यक्ति का उद्घोषक है ह्रदय। जीवन वीणा का तार है ह्रदय। हमारे जीवन का प्रकाशक है ह्रदय। प्रेम की सरिता है ह्रदय। भक्त की भक्ति है ह्रदय। ज्ञान का सागर है ह्रदय। भैरव की भैरवी है ह्रदय। 


ह्रदय को जानने से जीव, जीवन को, जीवंतता को, चैतन्य को जान लेता है और स्वस्थ होकर अपने निज रूप में समाहित हो जाता है। 


परमात्मा एक है और सब के ह्रदय में निवास करता है। इसलिए हम सब का ह्रदय भी एक है।ह्रदय ही यह अस्तित्व का स्वरूप है। प्रेम है। सब को प्रेम करो और ह्रदय में विश्रांति पाओ। खुद को भी प्रेम करो और और ख़ुदा के सर्जन को भी। 


जो ह्रदय में प्रविष्ट हो गया मानो भगवान के घर में प्रविष्ट हो गया। 


पूनमचंद 

२ जनवरी २०२३

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