भीतर देखो।
मनुष्य इस पृथ्वी पर कब, कैसे और क्यूँ आया यह रहस्य है। लेकिन जबसे समझ आई तबसे वह कोई अदृष्ट की बंदगी करता रहता है। भय से ही सही लेकिन जब खुद नहीं पहुँच पाता तब कोई विराट के समक्ष अपनी समस्या पीड़ा की बात रखता है। हिन्दू मंदिरों में जाते है, मूर्ति का दर्शन करते हैं फिर दो हाथ जोड़ आँखें बंद कर अपने भीतर जाकर ईश्वर की प्रार्थना करने लगते है। ईसाई गिरजाघर जाते हैं और एक बेंच पर शांत बैठकर बंद आँख से भीतर में परम पिता की प्रार्थना करते है। मुसलमान मस्जिद जाते हैं अथवा जहां है वहीं से नियत वक्त पर आँख बंद कर अल्लाह की दुआ नमाज़ अदा करते है। यहूदी, बौद्ध, जैन, पारसी, सीख धर्म में भी आँखें बंद कर भीतर ही पुकार या आराध्या की जाती है।
मनुष्य की रचना ही है अजब ग़ज़ब की। उसकी चेतना बाहर जाती है और भीतर। वह इन्द्रियों के सहारे बाहर के जगत को भोगता है और भीतर अपने सोर्स के साथ जुड़कर रीचार्ज होता रहता है। जाग्रत और सुषुप्ति की इस जीवन चर्या के बीच वह कुछ अतीन्द्रिय की तलाश में रहता है।
सृष्टि की रचना भी कुछ ऐसी ही है। दिख रहा जगत अस्तित्व की बाह्य अभिव्यक्ति है। इस विमर्श को कश्मीर शैव चिति शक्ति के नाम से पहचानता है। बाह्य अस्तित्व के भीतर क्या है वह कोई नहीं जानता। बीग बेंग हुआ और विश्व का प्राकट्य और विस्तार होता चला गया लेकिन उसके पूर्व क्या और उसके पीछे कौन यह खोज अभी भी जारी है। कश्मीर शैव ने उस स्पन्द को पहचाना। प्रकाश की प्रत्यभिज्ञा की और विमर्श की स्पन्दकारिका। अस्तित्व के भीतर शिव (प्रकाश) है जो बाहर चिति (विमर्श) बन प्रकट है। जैसे मनुष्य भीतर बाहर जाने पर दोनों स्थितियों में खुद होते हुए भी दोनों का द्रष्टा साक्षी बनकर अलग है, वैसे ही यह अस्तित्व का भीतर (शिव) और बाहर (चिति) का द्रष्टा साक्षी परम शिव है। है तो सब एक ही सत्ता के अनेक स्वरूप लेकिन सबके विभाजन में संसार है और एकता में समाधान, संदेह निवृत्ति और मुक्ति है।
अपने परम को सृष्टि परम से जोड़ना और अभेद की एकता करना ही मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य है।
बाहर बहुत चलें। थोड़ा भीतर भी चलें। नींद में तो जाते हैं लेकिन जाग्रत में भीतर चलें। फिर भीतर बाहर की एकता कर इस अस्तित्व के स्पन्द से अपने स्पन्द को जोड़ उसमें लवलीन होते चलें जायें। एक बार चिति से जुड़ गये तो शिव कहाँ छिपा रहेगा? चिति के पल्लू की पीछे शिव ही तो है। व्यक्त अव्यक्त साथ साथ है। अलग थलग नहीं। भीतर बाहर एक ही है सबकुछ। एक ही रंग का मेघधनुष, सब कुछ शिव शिव शिव शिवा।
🕉️ नमः शिवाय।
पूनमचंद
१२ मार्च २०२३
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