Friday, March 17, 2023

शिव यात्रीगण।

 शिव यात्रीगण। 


ब्रह्मांड की रचना को देखें तो एक ऊर्जा है जो स्थूलता की और बढ़ते बढ़ते विविध स्वरूपों में प्रकट होती रहती है। ऊर्जा संकोच ही तो है। इसी संकोच के एक अणु के केन्द्र के विभाजन-विघटन से एटम बोम्ब की ऊर्जा विस्फोटित हो जाती है। शक्ति है। अपार शक्ति। जिसका कोई नाप नहीं ले सकता।शिव की शक्ति। है तो सबकुछ एक, शिवशक्ति सामरस्य। प्रकाश का प्राण। उस प्राण बिना शिव जैसे शव।वही स्पन्द है।यह स्पन्द से ही सदाशिव से पृथ्वी तक के रूप बने है। यही इ से बना ईश्वर। स्वर से व्यंजन और अ से ह तक की अहं सृष्टि। परा पश्यन्ति मध्यमा वैखरी। 


शिव की पाँच शक्ति है और वह पंच कृत्यकारी है। पाँच शक्ति पाँच मुख भी माने जाते है। शक्ति एक ही है पर स्थूलता के स्तर पर अलग अलग नाम दिये गये है। पंच शक्ति है चित, आनंद, इच्छा, ज्ञान और क्रिया। चित यानि चैतन्य, चित का स्थूल रूप आनंद, आनंद का स्थूल रूप इच्छा, इच्छा का स्थूल ज्ञान और ज्ञान का स्थूल क्रिया। चैतन्य से क्रिया तक शक्ति के ही स्थूल रूप। शिव के पाँच कृत्य है सृष्टि, स्थिति, संहार, निग्रह, अनुग्रह। शिव के ही विविध रूप लिए यह सृष्टि बनती है, स्थिति पाती है और विलय हो जाती है। वह निग्रह (रोक) और अनुग्रह (कृपा) करती है। 


जीव शिव की ही लघु आवृत्ति है इसलिए उसमें भी सीमित रूप में पंच शक्ति और पंचकृत्य निहित है। इसी शक्ति और कृत्य के भेद से हमें सृष्टि में विविध प्रतिभाओं के दर्शन होते रहते है। लेकिन कोई विरला ही पूर्ण शिवत्व को शिवकृपा से प्रकट कर सकता है। मूलतः शिव है इसलिए सब की चाह शिवत्व पाने की है। जब तक पूर्ण शिवत्व प्रकट नहीं होता तब तक उसकी यात्रा चालू रहती है।  


अब चाहे शिव यात्रीगण मंदिर परिक्रमा कर लें, नर्मदा परिक्रमा कर लें, या ज्ञान परिक्रमा। पहुँचना तो है एक ही लक्ष्य पर। शिवत्व के। 


शिव ही है। पर मानते नहीं। ईसाइयों में जिसस ने यूँ ही नहीं कहा था कि अगर तुम पहाड़ को हिलाने को कहोगे तो वह हट जाएगा। 


स्पन्द हो शिव के। कोई कम नही। 

🕉️ नमः शिवाय। 


पूनमचंद 

१७ मार्च २०२३

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