Monday, March 20, 2023

भज गोविन्दं।

भज गोविन्दं। 


शिव का सदाशिव रूप एक योति/ज्योति स्तंभ है जिसे हम ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं और उस भोलेनाथ की पूजा, अर्चना, आराधना करते है। कहा जाता है कि, एक दिन ब्रह्मा और विष्णु को उसे नापने की चुनौती मिली थी। एक उपर की ओर चला और दूसरा नीचे की ओर, लेकिन अनंत शिव के छोर तक कोई न पहुँच पाया। ब्रह्मा ने फिर कपट का सहारा लिया, एक साक्षी खड़ा कर दिया और दावा कर दिया। लेकिन झूठ कैसे चलता? ब्रह्मा ने अपना एक मस्तक और पूज्य स्थान गँवाया और जूठी साक्ष्य केतकी पूजा से बाहर हो गई। 


यह एक रूपक कहानी है। यह पूरा चैतन्य सागर रूप चारों ओर फैला ज्योतिर्मय अकल शिव सदा काल, सर्वदा, नित्योदित, मौजूद ही है। उसमें अनंत सृष्टियों के बनने या बिगड़ने से कोई विकार नहीं होता। अनंत ब्रह्मांड बनके बिखर जाएँ, परंतु यह अकल निश्चल है। उसी की ही तो यह लीला है जो ज्ञान संकोच, बोध संकोच कर सदाशिव से पृथ्वी पर्यंत फैल कर इस जगत खेल में सबको प्रवृत्त रख रही है। 


क्या हमें हर पल, हर घड़ी इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन नहीं हो रहे? क्या हम इस ज्योतिर्मय स्तंभ से अनभिज्ञ है? मन हमारा ब्रह्मा है और बुद्धि विष्णु, दोनों चाहे कितनी भी दौड़ लगा ले, इस ज्योतिपुंज का नाप नहीं ले सकते।दौड़नेवाली मछली कितना भी दौड़े समुद्र को पार नहीं कर सकती। उसके मन, बुद्धि, इन्द्रियां, और शरीर की एक सीमा है। उस सीमा को पार कर वह असीम को कैसे नापेंगी और जानेंगी? 


जिस घड़ी मन को छोड़ा, बुद्धि छोड़ीं, शरीर और इन्द्रियों के धर्म से अलग हुए, शिव तो मौजूद ही था, वही था, प्रकट हो गया। शक्कर का पर्वत जहां खड़े थे वहीं चख लिया, शक्कर का स्वाद आ गया। फिर चाहे कितना भी गहरा अंधकार क्यूँ न आ जाए, ज्योतिर्लिंग का बोध कभी अस्त नहीं होता। 


असीम हो असीम का अनुभव करो। मन, बुद्धि, इन्द्रियों, शरीर को उसकी बंदगी में लगा लो जिससे की संकोच हट जाएँ और उजागर शिव प्रकट हो जाए। 


“भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते।”


शिव प्रकट ही है, बस ध्यान/ज्ञान नहीं। 


🕉️ नमः शिवाय। 


पूनमचंद 

२० मार्च २०२३

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