Sunday, November 21, 2021

मान जाइए ठहर जाइए

 मान जाइए, ठहर जाइए। 


मेरा मुझको पता नहीं, फिर भी चला तुझे खोज; 

मेरी मुझको खबर नहीं, फिर क्यूँ  भटकूँ  इधर-उधर?


मन याचक पूछे दाता से, तुं कहाँ से है धन देत; 

इच्छा ज्ञान कर्ता बन भोगे, फिर भी करे प्रश्न अनेक।  


छत्तीस बन किया विस्तार, विषय भोग भरमार;

क्यूँ रखी टीस अतृप्ति की, खेल में पड़ी ख़लल। 


अखंड प्रकाश अविच्छेद, संकोच करे धरे रूप;

भेद अभेद माया भासे, करे क्रीड़ा सुषुप्त विमर्श। 


अनुग्रह करी निग्रह तोड़े, उन्मेष की और आरूढ़े;

अनाहत लवलीन करे, कणकण पुलकित करे।


मान लिया सो जान लिया, खुदसे खुदा मिला लिया; 

टेढ़ा सर्प सीधा किया, सब जगत खुद से दीया। 


इच्छा ज्ञान क्रिया खेल, सामरस्य का खुले भेद;

गुरू शास्त्र सुधारें शान, संवित ज्ञान स्थान अभेद। 


पूनमचंद 

१९ सितंबर २०२१

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