Friday, June 30, 2023

मातृका-१

 मातृका-१


महाभारत की एक कहानी है। सत्यवती (मत्स्यगंधा) और हस्तिनापुर नरेश शांतनु के बेटे विचित्रवीर्य की शादी नहीं हो रही थी। दूसरी ओर काशी नरेश काश्य ने अपनी तीन पुत्रियाँ अंबा, अंबिका और अंबालिका का स्वयंवर रचा था। तीनों का देवव्रत भीष्म ने अपहरण किया। अंबा को शल्व से प्रेम था इसलिए उसे छोड़कर अंबिका और अंबालिका की शादी विचित्रवीर्य से हुई। उसे क्षय की बीमारी थी इसलिए सात साल तक दोनों पत्नियों के साथ रहने पर भी उसे संतान नहीं हुई। आख़िर वेद व्यास के द्वारा नियोग से धृतराष्ट्र और पांडु हुए जिनके कौरव पांडवों ने महाभारत खेला। श्रीकृष्ण केन्द्र में रहे। धर्म (युधिष्ठिर) का जय हुआ और अधर्म (दुर्योधन) का नाश हुआ। 


प्राचीन भारत वर्ष में काशी, कश्मीर, कन्नौज, उज्जैन, कांची, तक्षशिला, नालंदा, इत्यादि ज्ञान के केन्द्र रहे है। लेकिन हस्तिनापुर-दिल्ली ज्ञान केंद्र के रूप में कभी उभर नहीं आई थी। अब उपर्युक्त कहानी का रूपक समझते है। 


काशी ज्ञान प्रकाश का केन्द्र था, जिसकी अंबा, अंबिका, अंबालिका मातृका शक्ति थी। भीष्म उन्हें अपने राज्य के हित विकास के लिए उठा तो ले आए और अंबिका और अंबालिका को राज्याश्रय भी दिया लेकिन वर विचित्रवीर्य में योग्यता नहीं थी इसलिए उसका विकास नहीं हुआ। फिर विकल्प न रहने पर वेद व्यास से नियोग करवाया लेकिन संतति अंध और पांडु रोगी निकली। इसलिए वेदों के प्रमुख देव यम, वायु, इंद्र, अश्विनीकुमारों का सहारा लेकर मंत्रवीर्य से सद्गुणों रूपी पांडवों की उत्पत्ति हुई। लेकिन उनका विकास होने तक अहंकार के दुर्गुण पुत्रों का बल इतना बढ़ चुका था कि कुरुक्षेत्र का युद्ध लड़ना पड़ा। आत्मा श्रीकृष्ण को रथी बनना पड़ा, जिसने पंचशक्ति के सद्गुणों के द्वारा शत दुर्गुणों का संहार किया। 


उत्पत्ति का केन्द्र बिंदु है। बिंदु के दो त्रिकोण है। एक ऊर्ध्व और दूसरा अधः। साधक का चित्त जिस ओर चलेगा उस त्रिकोण की ओर उसका विकास होगा। मध्यमा से पश्यन्ति अथवा वैखरी की ओर। दोनों ही स्थितियों में मातृका शक्ति केन्द्र में है। शब्द, अर्थ और ज्ञान की तीनों भूमि पर कदम रखना है और आगे बढ़कर परावाक् (केन्द्र) में स्थित होना है। मातृका से बनी है माया, उसे लांघना इतना सरल नहीं। 


पूनमचंद 

३० जून २०२३

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