Tuesday, May 10, 2022

शिव सूत्र रत्न कणिकाएं।

 शिव सूत्र रत्न कणिकाएं। 


१) विचारों के प्रदूषण से मुक्त हो तब शक्ति का अनुभव। 


२) tension में न रहो, attention में रहो। 


३) देख देख तुं इतना देख, मीट जायें दुविधा हो जायें एक। 


४) घुम रही माया ठगने, ठग लेगी तेरी गठरियाँ। 


५) शरीर भाव के पिंजरे से बाहर आ। 


६) शहेनशाह साथ जन्मा, फिर हम का जंतु जीवन क्यूँ जीता? 


७) परम प्रत्यक्ष, इसी क्षण, फिर साक्षात्कार से क्यूँ दूर?


८) प्राण का मूल्य समझें। गणपति है वह शिव संतान। संविद (पूर्ण चैतन्य) का पहला अवतरण। 

चेतना को जोड़ता सेतु। अखंड प्राण- प्राणन, जगत की जीवनी शक्ति। हमारी श्वास प्रश्वास का मूल प्राण है वह एक अखंड प्राण ही है। हमारे विभाजित स्थूल प्राण के प्रति जागरूक होकर उस सामान्य प्राण (अखंड) से सेतु जोड़ना है। 


९) संविद को पकड़ने प्राण को पकड़े। 


१०) प्राण पकड़ने स्थिर आसन (पाषाणवत) सिद्ध करो। शरीर स्थिर से मन स्थिर, प्राण से जुड़े, सूक्ष्म शरीर संरेखित होते ही सुषुम्ना प्रवेश और भीतर दर्शन। अखंड से एकता। 


११) प्राण की तीन गति: स्थूल (श्वास प्रश्वास), सूक्ष्म (सुषुम्ना प्रवेश) और स्पन्द (कण कण स्पन्दित)। प्राणाभ्यास से स्पन्द पर पहुँचना है। 


१२) सूक्ष्मतम प्राणायाम में स्थित होते ही मोह जय होता है। 


१३) आप आत्मरूप हो यह आत्मविश्वास अर्जित करो। 


१४) गुरू वह आत्म विश्वास लाने में मदद करेगा। शेर का बच्चा शेर बनेगा। उसका विश्वास जीतो। 


१५) पवित्र बने रहे। मन बुद्धि के आवरण से स्वरूप को न ढँके। बिना लेबल किए thoughtless seeing या thoughtless listening का अभ्यास करें। एक मिनट भी सफल रहे तो समाधि अनुभव। दृष्टा और दृश्य ग़ायब होगा बस दर्शन रहेगा। 


१६) सुनते रहिए और सीखते रहे, मोती मिलेगा। 


१७) दिल खुला रखें और बिना लेबल सबका स्वीकार करें। 


१८) स्थूल सूक्ष्म और पर (समना) पर्यंत जो अज्ञानरूप आख्याती है, जो पाश है, तीन मलों का पशुता बंधन है, उस अधूरे ज्ञान से बाहर निकल। चेतन हो, पशुपति बन। स्वयं को सही पहचान। 


१९) बुरा लग रहा है तो अहंकार है। पहचान और पीछा छुड़ा। 


२०) माया के दो लंगर: आवरण और विक्षेप। 


२१) आवरण यानि ढँक दिया है। सुषुप्ति का आवरण। जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति, तुरीया के घोर रूप, जमी हुई consciousness। गुरू कृपा की गर्मी से चित्त पिघलाकर चिदरस की अनुभूति कर। 


२१) जाग्रत स्वप्न और सुषुप्ति जो कि अखंड रही तुरीय का ही विस्तार है उस  तीनों में रही तूरीय में अवस्थित हो और ऊर्जावान बन। 


३९) अपना (चेतना) विस्तार बढ़ाये और मोह आख्याती हटाये। 


३०) जो नहीं है उसका आरोपण विक्षेप है। हम नहीं है वह नाम रूप से पहचान विक्षेप है। अनात्मनि आत्म बोध, आत्मनि अनात्म बोध। 


३१) देश (space) शक्ति और काल (time) शक्ति से सब द्वैत है। उसी से मूर्ति वैचित्र्य और क्रिया वैचित्र्य है। नाम रूप से देश विभाजन और क्रिया भेद से काल गति। चेतन सर्वत्र एक अनुभव से देश और काल दोनों अदृश्य। 


३२) कमरे तोड़ और असीम का अनुभव कर। 


पूनमचंद 

१५ अप्रैल २०२२

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