Tuesday, May 10, 2022

भेद।

 भेद क्या है? 


अहम् और इदम् का विभाजन। हम पुरुष और प्रकृति अलग अलग। और हम क्या पंच कंचुक आवृत संकुचित ज्ञान। जीव प्रमाता। सकल प्रमाता। पाँचों शक्ति (सर्वकर्तृत्व, सर्वज्ञत्व, नित्य तृप्तित्व, नित्यत्व, स्वातंत्र्य)

मौजूद पर संकोचन से सीमित। 


हमारी पराधीनता आणव मल है। एक दूसरे का भेद दर्शन मायीय मल है और फल के उद्देश्य से किये कर्म से उत्पन्न कार्म मल है। 


बिना मल निवृत किये पूर्णाहंता का साक्षात्कार नहीं हो सकता। नया खड़ा नहीं करना है और संचित को समेटना है। 


निष्काम कर्म से कार्म मल से छूट सकते है। 


अखंड अभ्यास और स्वाध्याय से भेद की मायीय दिवार भी टूट सकती है। 


पर आणव मल, हमारी इतने लंबे वक्त की छोटे और संकुचित मानने वृत्ति यूँ ऐसे ही कैसे ब्रह्माकार हो जायेगी। गुरू लाख कहे पर मानेंगे तब बनेंगे न? अनुपाय है पर हमारी स्थिति देखते आणवोपाय और शाक्तोपाय से गुजरना पड़ेगा। बिना चक्की पीसे आटे का स्वाद यूँ कैसे आ जायेगा? 😁😜

0 comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.