Tuesday, May 10, 2022

Lit the Lamp

 बत्ती जलाओ मस्त रहो। 


अविद्या से परा विद्या तक। 


आसन सिद्धि से जब प्राण सम होकर सुषुम्ना में प्रवेश करता है, मन शांत होता है, तब बोध समझ में आता है। पाश है इसलिए पशु है। पशु से पशुपति रूप में व्याप्ति के लिए साधना है। अविद्या का ढक्कन हटाने विद्या प्राप्त करनी है। गुरू विद्या। परा विद्या। सहज विद्या।


अभी पशु व्याप्ति है जिसका कारण पाशावलोकन है। बस उसे त्याग देना है और स्वरूपावलोकन करना है।आँख खोलकर देखता हूँ तो मेरे सामने का जगत मेरा ही तो प्रतिबिंब है। जो देख रहा हूँ उस के नाम रूप की भाषा-व्याख्या मेरी ही, मेरे भीतर ही तो है। मैं मुझे ही देख रहा हूँ। मेरा ही दर्पण। जगत मेरी ही चेतना का विस्तार है। मैंने शरीर भाव से मेरी सीमा बाँध ली, छोटी कर दी, इसलिए वह सब कुछ मेरे ही भीतर होते हुए भी मुझसे अलग द्वैत नज़र आ रहे है। जब कि है अद्वैत। 


पृथ्वी से समना पर्यंत का यह पाश-जाल को आत्मरूप मानकर अपनी चेतना के विस्तार में, अपने स्वरूप में समा लो।आत्म व्याप्ति करो। सब मुझ में है ऐसा स्वरूप अवलोकन होगा तब पाशावलोकन ग़ायब हो जायेगा और आत्म व्याप्ति होगी।


अज्ञान गया पर अज्ञान संस्कार नहीं। शिव व्याप्ति बाकी है। आत्म व्याप्ति से उन्मना स्थिति प्राप्त होगी। उन्मना (उपर उठा) की व्याप्ति से सहज विद्या प्राप्त होगी। जिससे शिव व्याप्ति घटेगी, जो परा विद्या है। 


तब न अच्छा रहेगा, न बूरा। न पवित्र होगा न अपवित्र। न मैं रहूँगा न भगवान। सब अद्वैत। वेदन होगा, बोधन होगा और वर्जन होगा। साक्षात्कार होगा (वेदन), उस बोध रूप में अवस्थित होगा (बोधन) और जो नहीं था ढक जायेगा, जो है वह प्रकाशित हो जाएगा (वर्जन)। 


माया का विक्षेप और आवरण का निग्रह अब न रहा। अनुग्रह से प्रमाता अग्रसर हुआ। शुद्ध विद्या से ईश्वर और ईश्वर से सदाशिव सफ़र पार हुई। इदम अहम से अहम इदम। 


स्थिति मिले उसे टिकाये रखना है। इसके लिए पात्र ठीक करना-रखना है। पात्र बनना है। विनम्रता और समर्पण से गुरू प्रकाश की ऊर्जा में स्नान करना है, चित्त द्रवित करना है, और चिद्-रस बनना है। 


गुरू की सिखावनियों को शास्त्र से जोड़े और अमल करें। 


ओमकार तंत्र साधना के द्वादश पद की व्याख्या करनी अभी बाक़ी है। अ, उ, म, बिंदु, अर्ध चंद्र, निरोधिका; नाद के द्वादश पद में विभाजन से सूक्ष्मतम पार कर अनाहत नाद पहुँचना है। श्री प्राणनाथ जी का इंतज़ार रखें। 


परा विद्या सहजावस्था प्राप्त करें। 


सर्वोच्च देखे। आत्मरूप में सब समायें। 


मस्त रहो। 


पूनमचंद 

१६ अप्रैल २०२२

0 comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.