Tuesday, May 10, 2022

बरौंदा। seed of banian tree

 बरोंदा। 


बरगद (वटवृक्ष) के पेड़ के फल को वटफल या बरोंदा कहते है। सामवेदीय छांदोग्य उपनिषद् में एक सुंदर संवाद है। पिता उद्दालक गुरू है और पुत्र श्वेतकेतु शिष्य। 


श्वेतकेतु प्रश्न करते है।आत्मा (self) है तो दिखती क्यूँ नहीं? अदृश्य वह भौतिक विश्व कैसे बनी? 


गुरू उद्दालक शिष्य श्वेतकेतु को बरोंदा लाने को कहते है। शिष्य ले आता है। फिर कहते है तोड़ो उसको। अंदर अनेक बीज होते है। उसमें से एक बीज लेकर तुड़वाते है और पूछते है, अंदर क्या है? शिष्य जवाब देता है कुछ नहीं। 


गुरू बताते हैं कि यह कुछ नहीं में जो अदृश्य है वही तो वटवृक्ष बनता है। वही सत्य है। वही आत्मा है। तत् सत्यं स आत्मा तत्त्वमसि। 


वही self है, वही शिव है, वही ब्रह्म है जो हमारी तुम्हारी आत्मा बन विचरण कर रही है। आप के पास ही है, आप ही हो, खोजेंगे कहाँ? 


हमारे वर्तमान शरीर से उसका कनेक्शन हमारा जन्म माना गया। उसकी संगत जीवन माना गया और जब डीस्कनेक्शन हो जायेगा तो मौत मानी जायेगी।वास्तव में अजन्मा हम न जन्मे, न मरे। अस्तित्त्व कैसे मर सकता है? ज्ञान शाश्वत शिव है। वही हमारा आपका अदृश्य स्वरूप है। वही वटवृक्ष बना है। सदा मौजूद फिर भी अदृश्य। उस स्व में स्वस्थ होने की कामना करें। 


स्वस्थता हि सिद्धि है। 😊


पूनमचंद 

२३ अप्रैल २०२२

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