Tuesday, May 10, 2022

Siphon Joy

 सायफनींग। (दाबलंघिका) 


बचपन में दाबलंघिका सिद्धांत सब ने पढ़ा होगा। एक नली के द्वारा तरल पदार्थ एक पात्र से दूसरे पात्र में बहाया जाता था। दोनों पात्रों में तरल पदार्थ समान स्तर पर आकर बहाव रूक जाता था। पर ऐसा करने से पहले सायफन की नली को स्थानांतरित करनेवाले तरल पदार्थ से भरना पड़ता था और एक छोर को अंगुली से बंद कर दूसरे छोर को तरल पदार्थ में डूबा देते थे। फिर जैसे ही बाहर के छोर के छिद्र से अंगुली हटाई तरल पदार्थ बाहर प्रवाहित होना शुरू हो जाता था। 


कुछ ऐसी ही प्रक्रिया है। 


हमारा चित्त (मन, बुद्धि, अहंकार) जो कि चिति (चैतन्य) का ही संकुचित स्वरूप है, वह अपनी ज्ञानेंद्रियों (ज्ञान शक्ति) और कर्मेन्द्रियों (क्रिया शक्ति) के द्वारा बाह्य जगत के पदार्थों से पंच विषयों (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध) का भोग करता है और उस भोग से क्षणिक क्षणिक आनंद का आस्वादन लेता है। आनंद अपने भीतर है पर उसको प्रकट करने उसे बाह्य विषयों और अवलंबन की ज़रूरत रहती है क्योंकि वह अतृप्त है। वास्तव में बाह्य पदार्थों में आनंद नहीं है पर उनके संपर्क से, भोग के पल बह अपने भीतर के आनंदसर से उस क्षण जुड़ जाता है। 


अब इसी बात को युक्ति बना लो। बाह्य पदार्थ के भोग से जैसे ही आनंद का स्फार हुआ, एक बिजली चमकी उस को पकड़ लो और उस को अंदर के आनंदसर में जोड़ दो, अंतर्मुख हो जाओ। 


बाह्य पदार्थ के संपर्क से द्रवित आनंद को चित्त रूपी नली में भरा, मध्य को पकड़ा और उसे भीतर के आनंद सागर से जोड़ दिया। और फिर बाहर का द्वार भी खोल दिया जिससे आनंद सागर का वह आनंद बाह्य जगत के सभी पदार्थ जो की मेरा ही शरीर हो उसमें व्याप्त हो जाए, उसको सिंचित कर दे। भीतर की चैतन्य रोशनी से मेरे जगत का विस्तार हो जायें और मैं भीतर बाहर एकरूप होकर आत्मा के सर्वरूप का दर्शन करूँ। सभी आकारों में रहे मुझ शिव निराकार का दर्शन करूँ। 


तीन कदम चलना है। 


१) बाहर के भोग से जो आनंद क्षण प्रकट हुई उसे पकड़ो और लेकर भीतर आ जाओ। 


२) उस आनंद से चित्त (मन, बुद्धि, अहंकार) को झंकृत कर मध्य (तुरीया-आनंद) का विकास करो। चित्त को आनंद से एकमय करो। 


३) उस आनंद से लबालब भरे/रंगे मन (आँख) से बाह्य जगत को आनंद दृष्टि से भर दो। 


भीतर attached हो और बाहर involve. आनंद का केन्द्र अंदर और उसका फैलाव पूरा विश्व। मेरा ही शरीर, मेरे से प्रकाशित, मुझ रूप से प्रकाशित। दृश्यम शरीरम्। आनंद से भरी भैरवी स्थिति। भैरव हो गया। 


आनंद है ही। बस जल भरना है और सायफन करना है। 


पूनमचंद 

१० मई २०२२

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