Saturday, December 17, 2022

अष्टमातृका।

अष्ट मातृका। 

(Eight Mother Goddesses) 


नवरात्र शक्ति पर्व है। शक्ति आराधना और विद्या का पर्व है। यह सृष्टि का सृजन बीग-बेंग से हुआ ऐसा वैज्ञानिक कहते हैं और हम उसे अनाहत ध्वनि ओम की कृति मानते है। दोनों ही स्थिति में ध्वनि शब्द प्रमुख हुआ। जैसे बिजली बड़े वोल्टेज से घटती हुई कम वोल्टेज से डिजीटल दुनिया चलाती हैं वैसे बीग बेंग की  ध्वनि सूक्ष्म होते होते वर्ण शब्द पद की हमारी दुनिया को सुशोभित कर रही है। शक्ति का ही सारा खेल है। 


यह सृष्टि का रचयिता है जो शक्ति रूप से प्रकट विश्व रूप लिए खड़ा है। कईं नाम होंगे, पर इस देश में रचयिता को शिव और शक्ति को पराशक्ति के नाम से जाना जाता है। पराशक्ति दादीमाँ है। वह वामेश्वरी रूप से अष्ट मातृका के रूप में प्रकट हैः ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी, चामुण्डा, महालक्ष्मी। अष्ट नवरात्र (eight divine forms, master faculties of the manifested universe) यही शक्ति की आराधना है। 


अष्ट मातृका पुनः आठ आठ वर्गों में ६४ योगिनी का रूप ले लेती है। जो कि तंत्र साधना का स्रोत है। ८*८=६४ प्रभावी नंबर बन जाता है। इसलिए अष्टकोण का हिन्दू, बौद्ध और जैन तंत्रों में बड़ा महत्व है। ज्योतिर्लिंग मंदिरों के गर्भगृह अष्टकोण से अंकित है। यज्ञ कुंड अष्टकोणीय होते है। शिवाजी की मोहर (seal) अष्टकोणीय (octagonal) थी। भारतीय नौसेना का नया निशान अष्टकोणीय है। लिथुआनिया से भारत तक इसका प्रभाव था। रशियन मात्रयोक्सा भी अष्ट गुड़िया के रूप आज भी प्रस्तुत है। एक माता और बाक़ी उसके बच्चे। जन्म नंबर ८ भी विशिष्ट है। 


अनाहत नाद की यही ध्वनि वर्णमाला का रूप लिए है जो अष्ट मातृका के रूप में वर्णमाला में प्रकट है। वर्णमाला में स्वर और व्यंजन होते है। स्वर ह्रस्व (अ, इ, उ, ऋ), दीर्घ (आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ) और संयुक्त (ए, ऐ, ओ, औ, ऋ) है और व्यंजन क-च-ट-त-प और अवर्गीय समूह में विभाजित है। 


ध्वनि मुख के जिस भाग से निकलती है उसी के आधार पर व्यंजनों को अनुक्रम से कंठिय (क्, ख्, ग्, घ्, ड़), तालव्य (च छ ज झ ञ), मूर्द्धन्य (ट ठ ड ढ ण), दंतव्य (त थ द ध न), ओष्ठ्य (प फ ब भ म), मिश्र वर्गीय (य र ल व, श ष स ह), 3 संयुक्त व्यंजन – क्ष त्र ज्ञ. 3 अतिरिक्त व्यंजन – श्र ड़ ढ़ बनते है। 


३९ व्यंजन और १२ स्वर (अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ, अः) मिलकर ५१ का यह शक्ति मातृका समूह हिन्दुस्तान के मनुष्यों की बौद्धिक क्षमता और शक्ति की नींव है। 


शक्ति के तीन चरण है। पर (non dual) परापर (non dual cum dual) अपर (dual)। पराशक्ति वामेश्वरी रूप से खेचरी, गोचरी, दिग्चरी और भूचरी रूप से यह पर, परापर, अपर सृष्टि में प्रवृत्त है। चतुर्शक्ति (खेचरी, गोचरी, दिग्चरी और भूचरी) के दो प्रारूप है जो हमारी कामना और बुद्धि के प्रोग्रामिंग के आधार पर चलती है। 

मंत्र विज्ञान यही ध्वनिओं को एकत्रित कर चार्ज की हुई शक्ति है जिसके प्रभाव से मनुष्य अपर (dual) से पर (non dual) की और घोर (darkness) से अघोर (light of consciousness) की यात्रा कर सकता है। बंधन से मुक्ति की यात्रा। चयन अपना है। उत्थान या पतन? पशु बने रहना या पशुपति बनना? 


भाषा और शब्द की पसंद और अपनी मनः स्थिति का संयोजन हमारा भविष्य तय करती है। इसलिए हमारी भाषा को संस्कृत नाम दिया जो पशु मानव को संस्कृत कर पशुपति बनाने का सामर्थ्य रखती है। शब्द से शुरू करें और शब्दातीत पर ठहरें। 


पसंद अपनी अपनी। 


पूनमचंद 

३० सितंबर २०२२

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