Saturday, December 17, 2022

Search of the bliss

 आनंद की खोज। 


तीन दिन पहले एक अनूठी शादी के सत्कार समारोह में जाना हुआ। शाम ढल चुकी थी, मौसम ख़ुशनुमा था और पेट में चुहे दौड़ रहे थे। शादी अनूठी इसलिए थी क्योंकि दुल्हा ६५ साल का विधुर था और दुल्हन ५४ साल की एक प्राध्यापिका। दुल्हा बिल्डर होने से अमीर था और दुल्हन डाक्टरेट की हुई सरस्वती उपासक। लक्ष्मी और सरस्वती का मेल हुआ था। हमने युगल को अभिनंदन दिया और युगल के साथ एक फ़ोटो भी खींचवाई। परंतु अंतःनजर तो खाने की ओर जा रही थी। दुल्हन ने शिष्टाचार भी किया की डिनर लेकर जाइए। मिष्टान्ने इतेरे जनाः। 


हम पहुँच गये सीधे सूप काउन्टर पर। गरमा गरम सूप की चुस्की लेते आनंद आ रहा था। स्टार्टर तो जैसे रखे जाते, वेटर उठा लेते थे। इसलिए जैसे क्रिकेट का कैच लपक लेने फ़ील्डर चौकन्ना हो ऐसे लोग रखते ही झपट लेते थे। आख़िर हमारा नंबर भी लग गया और हमने पनीर और ब्रेड का सूप के साथ आस्वादन लिया। 


अहमदाबाद के मेनू में आजकल मोमो ने जगह बना ली है। तीन प्रकार के टोपींग के साथ गरमा गरम मोमो ने मुँह को रसों से और मन को आनंद से भर दिया।उतने में नज़र पड़ी चाट पर। सेव, पकोड़ी पर खट्टी इमली की मीठी चटनी के साथ दहीं मिलाकर किया छिड़काव डीस और मन दोनों को चटपटा कर रहा था। एक डीस चाट की भी झपट ली। लेकिन अब भूख समाप्त हो रही थी। पेट के थैले की जगह भर चुकी थी। कुछ डेज़र्ट के लिए जगह बनानी थी। फिर भी सोचा एक नज़र मेन कोर्स पर कर ली जाए। तीन प्रकार की मिठाई (हल्वा, कोकोनट रबड़ी और मिट्ठी रोटी), दो सब्ज़ियाँ, दाल चावल, रोटी तंदूरी कुल्चा, पापड़, सलाड, इत्यादि व्यंजनों से काउन्टर लगे हुए थे। लेकिन आइटम देखने और गिनने मात्र से आँख और पैर थकने लगे। मन ही मन सोच रहा था कि कुछ मिनिट पहले जो भोजन अति आनंदप्रद लग रहा था अब आनंद जैसे बुझ ही गया है। अगर पुरानी रस्म होती और कोई रिश्तेदार या नाती आकर बल से मुँह में ठूँस देता तो बजाय हंसी गाली निकल पड़ती। आईसक्रीम पर तो नज़र भी नहीं डाली। सिर्फ़ एक चूरन की जगह थी जो थोड़ा मुखवास डालकर डीनर ख़त्म किया और लौट आए। 


हमारा जीवन भी कुछ यूँ ही इस डीनर जैसा है। जब तक नहीं मिला प्यास बनी रहती है। और जब मिल गया, थोड़ा कुछ भोग लिया फिर व्यक्ति, पदार्थों से मन ऊब जाता है।


सबको एक ही खोज है, आनंद की। लेकिन बाहर जिसमें आनंद देखा वह आख़िर दुःख में परिवर्तित हो जाता है। आनंद भीतर है और खोज बाहर। कैसे मिलेगा?  इसलिए भीतर यात्रा ज़रूरी है। भीतर आनंद का दरिया भरा पड़ा है। अमृत का सरोवर है। एक बार चख लिया, आनंद चिरंजीव हो जाएगा। फिर भीतर बाहर सब एक हो जाएगा। आनंद अंदर भी होगा और बाहर भी। अतः स्थिति बाह्य व्याप्ति। 


भीतर दाखिल हो। 


पूनमचंद 

१९ अक्टूबर २०२२

0 comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.